देश में महंगाई की दर एक बार फिर तेजी से बढ़ी है, जिससे उपभोक्ताओं की जेब पर असर पड़ा है। अक्टूबर महीने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 6.21% हो गई, जो सितंबर में 5.49% थी। मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं के दाम में वृद्धि है, जिससे महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 6% के संतोषजनक स्तर से ऊपर पहुंच गई है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति 10.87% हो गई, जो सितंबर में 9.24% और पिछले साल अक्टूबर में 6.61% थी। सब्जियों, फलों, और तेलों के दाम में वृद्धि ने मुद्रास्फीति को तेज़ी से बढ़ाया है, जिससे उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ और बढ़ा है।
NSO के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर 6.68% और शहरी क्षेत्रों में 5.62% रही। ‘दालों और इसके उत्पादों’, अंडे, ‘चीनी और कन्फेक्शनरी’ तथा मसालों में हालांकि, मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो महंगाई दर को थोड़ा संतुलित करती है।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने बताया कि अक्टूबर में मुद्रास्फीति 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जो मौद्रिक नीति समिति (MPC) के 4% के मध्यम अवधि के लक्ष्य से काफी ऊपर है। उनका मानना है कि RBI की आगामी बैठक में रेपो दर में कटौती की संभावना कम हो गई है। वे अनुमान करती हैं कि ब्याज दर कटौती चक्र अब फरवरी 2025 के बाद ही शुरू हो सकता है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने महंगाई को लेकर सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति अब दोहरे अंकों में है। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि अक्टूबर में सब्जियों की कीमतों में 42.18% की वृद्धि हुई और प्याज जैसी आवश्यक वस्तुएं 80 रुपये प्रति किलो तक बिक रही हैं। कांग्रेस का मानना है कि इस महंगाई के बीच सरकार खाद्य पदार्थों को मुद्रास्फीति के आकलन से बाहर कर सकती है।
खाद्य वस्तुओं के बढ़ते दाम के कारण महंगाई की मार आम लोगों पर सीधी पड़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती निकट भविष्य में नहीं हो पाएगी, जिससे आम जनता को महंगाई के इस दौर में राहत मिलने की संभावना कम है।