लोकतंत्र में किसी का विरोध करना उचित है, लेकिन जब यह विरोध नफरत का रूप ले लेता है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस नेता अक्सर कहते हैं कि वे “मोहब्बत की दुकान” चला रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके भड़काऊ बयान इस बात का संकेत हैं कि कांग्रेस की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है।
कांग्रेस नेता न केवल प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग करते हैं, बल्कि उनके माता-पिता पर भी अमर्यादित टिप्पणियां करने से नहीं चूकते। “मोदी तेरी कब्र खुदेगी” जैसे नारे इस बात का प्रमाण हैं कि नफरत की राजनीति में कांग्रेस आगे बढ़ रही है। जब भी ऐसा होता है, सवाल उठता है कि कांग्रेस आलाकमान ऐसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता?
रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अपनी नफरत का इजहार किया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान, उन्होंने कहा कि “मैं इतनी जल्दी मरने वाला नहीं हूं। जब तक मोदी को सत्ता से नहीं हटाएंगे, तब तक मैं जिंदा रहूंगा।” क्या खरगे का एकमात्र लक्ष्य मोदी को हटाना है, या वे वास्तव में जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए हैं?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खरगे की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया दी, stating कि उन्होंने “कटु तरीके से नफरत” व्यक्त की। शाह ने कहा, “खरगे जी ने अपने स्वास्थ्य के मामले में मोदी का नाम बिना वजह घसीटा।” उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस नेताओं में मोदी के प्रति नफरत और डर स्पष्ट है।
खरगे के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए, अमित शाह ने प्रार्थना की कि वे दीर्घायु हों और 2047 तक विकसित भारत का निर्माण होते देखें। यह भी उल्लेखनीय है कि जब खरगे का स्वास्थ्य खराब हुआ, तब प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें फोन कर उनका हालचाल लिया था।
कांग्रेस का मोदी विरोध नफरत की राजनीति में बदलता जा रहा है। यह स्पष्ट है कि पार्टी के शीर्ष स्तर पर मोदी के प्रति नफरत भरी हुई है, जिससे अन्य नेता भी इसी नीति का अनुसरण कर रहे हैं। क्या इस तरह के बयानों से कांग्रेस अपनी राजनीतिक छवि को मजबूत कर पाएगी, या यह केवल उनकी असहमति को दर्शाने का एक और तरीका है?