विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि जी20 की सामूहिक शक्ति ही वैश्विक एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहायक होगी। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीयता को मजबूत करना समय की जरूरत है और वैश्विक नीतियों को कुछ देशों के हित तक सीमित नहीं किया जा सकता।
चीन पर कड़ा संदेश – ‘जबरदस्ती की कोई जगह नहीं’
दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित बैठक में जयशंकर ने चीन पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान किया जाना चाहिए और किसी भी तरह की ‘जबरदस्ती’ की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। उन्होंने 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) के पालन पर जोर दिया और कहा कि जबरदस्ती व दबाव की नीतियां स्वीकार्य नहीं होंगी।
यूएन और बहुपक्षीयता में सुधार की जरूरत
जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र और उसकी सुरक्षा परिषद (UNSC) की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संस्थाएं अकसर ग्रिडलॉक (अवरोध) में फंस जाती हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल UNSC को फिर से सक्रिय करना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि उसके कार्य करने के तरीकों और प्रतिनिधित्व में बदलाव भी आवश्यक हैं।
भारत-चीन समुद्री तनाव और सुरक्षा पर जोर
जयशंकर की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई जब चीन ने पाकिस्तान के साथ बहुराष्ट्रीय AMAN-2025 नौसैनिक अभ्यास में भाग लिया था, जिसमें अमेरिका, इटली, जापान और अन्य 32 देशों ने भी भागीदारी की थी। चीन की हिंद महासागर में बढ़ती गतिविधियों को लेकर भारत सतर्क है और इसे ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति के तहत देखा जा रहा है। जयशंकर ने हिंद महासागर और अरब सागर में भारत की नौसैनिक सुरक्षा भूमिका को भी रेखांकित किया।
गाजा और रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख
जयशंकर ने बैठक में गाजा संघर्ष, बंधकों की अदला-बदली और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत की स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने दो-राज्य समाधान का समर्थन करते हुए कहा कि आतंकवाद की कड़ी निंदा की जानी चाहिए। साथ ही, उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध के कूटनीतिक समाधान की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
‘मतभेद विवाद न बनें’ – जयशंकर का संदेश
बैठक के समापन पर जयशंकर ने कहा, “मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए, विवाद संघर्ष में नहीं बदलने चाहिए, और संघर्षों से दुनिया में बड़ी टूटन नहीं होनी चाहिए। हमें मिलकर समाधान की दिशा में आगे बढ़ना होगा और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना होगा।”
जयशंकर के इस बयान ने भारत के स्पष्ट और संतुलित वैश्विक रुख को दर्शाया। जहां एक ओर उन्होंने चीन की विस्तारवादी नीतियों पर परोक्ष रूप से निशाना साधा, वहीं अंतरराष्ट्रीय सहयोग और बहुपक्षीय सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका संदेश स्पष्ट था – वैश्विक नीतियां किसी एक देश के हित में नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के लाभ के लिए होनी चाहिए।