प्रियंका साहू
मुजफ्फरपुर, बिहार
नन्हीं सी बच्ची हूं,
इस दुनिया में आई हूं,
खुशियां तो मनाओ जरा,
दुख को दूर भगाओ जरा,
क्यों उदास नजरों से तुम,
निहारते हो मेरी ओर?
मैंने भी लिया है जन्म,
वैसे जैसे जन्मे हैं बेटे,
फिर क्यों उदास हैं ये चेहरे?
जरा खुशियां तो मनाओ,
जरा दुख को दूर भगाओ,
नन्ही सी बच्ची हूं,
इस दुनिया में आई हूं,
न जाने एक बेटे को,
क्यों मिलता है सम्मान?
न जाने एक बेटी को,
क्यों मिलता है अपमान?
नन्ही सी बच्ची हूं,
इस दुनिया में आई हूं,
खुशियां तो मनाओ जरा,
दुख को दूर भगाओ जरा।
(चरखा फीचर)
———————————————————————————————————–
कहर दोनों का यूं जारी है
हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू
चले लहरें तूफानों की,
अम्बर में धामनी कड़क रही है।
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
दरिया-नाले सब उफानो पर,
भूस्खलन भी जारी है।
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
भूकंप से कांपे पहाड़,
ग्लेशियर की भी तयारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
बाढ़ से सब बह गए हैं
भला मौत से किसकी यारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
बादल फटना यूं पहाड़ों पर,
मैदानों मे लू न्यारी है
कहर दोनों का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
जंगलों में आग भयंकर है
वृक्षों के तने पर आरी है
कहर मानव का यूं जारी है।
जैसे प्रकृति ना इस को प्यारी है।
जिस की गोदी में पला तू,
उस प्रकृति के खेल निराले हैं
हानि पहुंचाएगा जो उसको ,
वक़्त पर उस के दिवाले हैं।
इसलिए कहर सब का यूं जारी है।
मानों मानव से हिसाब की बारी है।।
(चरखा फीचर)