पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन 26 दिसंबर को हुआ, जिसके बाद देश और दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। उनका जीवन न केवल राजनीति में, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी एक प्रेरणा बना। डॉ. सिंह की कार्यशैली और उनके विरोधियों के साथ शालीनता से संवाद करने की क्षमता हमेशा चर्चा का विषय रही है।
संसद में सुषमा स्वराज और मनमोहन सिंह का बहस
मनमोहन सिंह का जीवन कई ऐसे ऐतिहासिक क्षणों से भरा पड़ा है, जहां उन्होंने अपनी समझदारी, चुप्प और बुद्धिमत्ता से राजनीति के आक्रामक दौर में अपनी छाप छोड़ी। एक ऐसा ही पल 2011 में हुआ, जब विकीलीक्स के मुद्दे पर संसद में बहस हो रही थी। उस समय सुषमा स्वराज ने शेरो-शायरी के जरिए प्रधानमंत्री पर हमला बोला। सुषमा ने शहाब जाफरी की तर्ज पर यह शेर पढ़ा: “तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लूटा?”
मनमोहन सिंह, जो हमेशा शालीन और सुसंस्कृत रहे, ने इस तंज का उत्तर अल्लामा इकबाल के शेर से दिया: “माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।” यह पल संसद में कैद हो गया और आज भी लोगों के दिलों में ताजा है।
मनमोहन सिंह का शालीन और बुद्धिमान नेतृत्व
मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और अपनी शासनकाल में कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों की दिशा तय की। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नए आयाम दिए और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। उनका जीवन हम सबको यह सिखाता है कि राजनीति में भी शालीनता, बुद्धिमत्ता और ईमानदारी से सफलता प्राप्त की जा सकती है।
उनकी यह शायरी भरी शैली, विरोधियों के साथ अच्छे संबंध और शांति से भरा दृष्टिकोण, हमेशा भारतीय राजनीति के एक अमूल्य धरोहर के रूप में याद किया जाएगा।