यहां प्रतिवर्ष जेठ महीने में भव्य मेला लगता है। जीजी (श्री आई माताजी) के भैसाणा में चमत्कार श्री जीजी माता ने डायलाना में काफी दिन रहकर अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ की । तब वे घूमती-घूमती भैसाणा ग्राम जा पहुंची। अपने नन्दी के साथ तालाब के पास से गुजर रही थी। तब सामने से कुछ ग्वाले अपनी भैंसों को लेकर आ रहे थे तो आपस में कहने लगे देखो ! सामने एक वृद्ध कैसा स्वयं कर रही है। वे चिल्ला कर बोले ऐ डोकरी ! जरा दूर रहना कहीं हमारे जानवर को भडकायेगी। मां जीजी ने समझाया,तुम अपने जानवरों को लेकर चले जाओ वे नहीं भडकगें। फिर भी ग्वाले जीजी को भला-बुरा कहने लगे। वे ग्वाले बड़े ही अभिमानी,निर्दयी थे। लोगों की खड़ी फसलों में अपने जानवर चराना उनकी दिनचर्या थी। आस पास के गांवों के किसान उनके आतंक से दुखी थे। जीजी का अवतार तो दीन दुखियों की सहायता करने एवं अत्याचारी,अन्यायी एवं घमण्डियों का विनाश करने के लिए ही हुआ था। मां जीजी ने ग्वालों को शाप दिया-‘‘जाओ तुम्हारी भैंसे पत्थर की बन जायेंगी।’’ इतना कह कर जीजी आगे चल पड़ी। जब ग्वालों ने तालाब पर जाकर देखा तो उनकी भैसें पत्थर की हो गयी थीं। तब उन्हें चिन्ता हुई। उनमें से एक ग्वाला बोला हमनें व्यर्थ ही उस वृद्धा को छेड़ा व सताया था। हमें उस वृद्ध से माफी मांगनी चाहिए। हो सकता है,वह हमें क्षमा कर दें। नहीं तो हमारा सर्वनाश हो जायेगा। ग्वाले मां जीजी के पद चिन्हों को देखते हुए उनके पीछे भागे। वे जाकर मां जीजी के चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगे-मां जीजी हमें माफ कर दो। हम पापी हैं,दोषी हैं। मां हम बर्बाद हो जायेंगे। ये हमारी आजीविका का एक मात्र सहारा है। हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे। दया करो मां। मां जीजी ने उन्हें समझाया कभी घमंड मत करो। कभी भी अबला,वृद्धा और जानवरों को मत सताओ। खेतों में खड़ी फसलों को कभी नुकसान मत पहुंचाओं। ग्वालों ने मां जीजी के सामने प्रण लिया एवं वचन दिया कि भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे। फिर जीजी ने उन्हें अपना अनुयायी बनाया। मां जीजी के चमत्कारों से पत्थर बनी हुई भैंस के निशान आज भी गाँव भैसाणा के तालाब पर मौजूद हैं। जीजी (श्री आईमाताजी) का राजा को चमत्कार मेवाड़ राज्य पर एक बार विपत्ति के बादल मंडराये। राणा कुम्भा के बाद उसके उत्तराधिकारी को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। राजा रायमल भी अपनी गद्दी छोड़कर सोजत क्षेत्र में दर-दर भटक रहे थे। मां जीजी के चमत्कारों की चर्चा चारों दिशाओं में फैली हुई थी। राजा रायमल ने भी मां जीजी के चमत्कारों के बारे में सुना था। उनकी भी इच्छा हुई कि मां जीजी के दर्शन करने के लिए जाऊं। मां जीजी जहां पर भक्तों को उपदेश देते थीं वहां रायमलजी मां जीजी का आर्शीवाद लेने पधारे। जैसे ही रायमलजी मां जीजी के चरणों में झुके और प्रणाम किया तब मां जीजी ने कहा-पुत्र तुम्हारा भला हो और राजगद्दी पाओ तथा जन साधारण का भला करो। मां जीजी का आर्शीवाद सुनकर रायमल जी आश्चर्य में पड़ गये। उन्होने कहा-मां मेरा तो राज्य ही छीन लिया गया है,लोग मेरे खून के प्यासे हैं। मैं शरणागत की भांति दर-दर भटक रहा हूं। कैसे राजगद्दी मिलेगी ? धैर्य धारण करो,विश्वास करो सब ठीक होगा। तुम यहां से मेवाड़ राज्य के सामंत अपने आप आकर आपको ले जायेंगे और मेवाड़ राज्य के सिंहासन पर बैठायेंगे। रायमल ने मां को प्रणाम कर कहा आप के वचन फलीभूत हुए तो मै आपका भक्त बना रहूंगा तथा आपके उपदेशों का सदैव पालन करुंगा। रायमलजी मेवाड़ भक्त बना रहूंगा तथा आपके उपदेशों का सदैव पालन करुंगा। रायमलजी मेवाड़ प्रस्थान कर गए। वे मेवाड़ में रहने लगे। ठीक एक माह बाद मेवाड़ के सामंत पधारे और रायमलजी से बोले आप शीघ्र मेवाड़ पधार कर राजगद्दी संभालें।
रायमल जी ने मेवाड़ आकर पुन राज्य की बागडोर अपने हाथों में संभाली । वे शीघ्र मां जीजी के पास पहुंचे और उनके चरणों में शीश नवाया। मां जीजी आपको यह सेवक आपकी सेवा में हाजिर है। हुक्म करें,आपकी आज्ञा का पालन करुंगा। रायमलजी को मां जीजी ने अपने पास बुलाया और अपने मुख से उपदेश देते हुए कहा-निर्भय होकर आनन्दपूर्वक राज करो। गरीबों,असहायों,अबलाओं एवं दीन दुखियों की सेवा करो। किसानों की मदद करो झूठ कभी मत बोलो। माता पिता की सेवा करो। यह मेरी सेवा है। राजा ने मां जीजी के सद्वचनों को ध्यानपूर्वक सुना एवं उनको अपने जीवन में अपनाने का वचन दिया। उन्होंने जीजी से कहा आपकी कृपा से मुझे पुनः मेवाड़ का राज सिंहासन मिला आप मेरे राज्य में से 10 गांव भेंट स्वरुप स्वीकार करें तथा मेवाड़ पधारकर विराजें ताकि मै आपकी सेवा कर सकूं। मां जीजी ने मेवाड़ जाने का आग्रह स्वीकार कर दिया। रायमलजी मां जीजी को कुछ न कुछ भेंट सच्चे मन से देना चाह रहे थे। मेवाड़ राज्य की सीमा में डायलाणा ग्राम जहां पर मां जीजी ने बड़ प्रकट कर अखंड ज्योत की स्थापना की थी। इसी मंदिर की देखभाल एवं अखंड ज्योत की आय हेतु 500 बीघा जमीन मां जीजी को भेंट स्वरूप दी तथा रायमल जी ने वचन दिया कि मेरे वंशज जो भी राजगद्दी पर विराजमान होंगे। वो भी श्री आई माताजी को 50 बीघा जमीन भेंट करेंगे। इस प्रकार मां जीजी ने रायमलजी को परचा देकर अपने आई पंथ का भक्त बनाया।
जीजी-पाल
जीजी (श्री आई माताजी) का ‘‘जीजी-पाल’’ का चमत्कार मां जीजी ने सभी जगह अपना दिव्य चमत्कार देते हुए बालाजी सीरवी (बिलावास) को मुंह मांगा वरदान देकर आगे भ्रमण करती हुई पतालियावास आई। जहां पर सीरवी जाति के लोग बड़ी संख्या में रहते थे। पतालियावास के आस पास छोटी मोटी पहाड़ियां के साथ बालू जमीन होने के कारण वर्षा के पानी के साथ मिट्टी बह जाने से भूमि पथरीली और बंजर सी हो गई थी। किसान अपने खेतों के चारों तरफ मेड़ बनाते थे लेकिन वर्षा से उनका प्रयास पल भर में ही बेकार हो जाता था। मो जीजी ने किसानों का अनुरोध स्वीकार करते हुए