आरोही पहाड़ों पर स्थित एक छोटे से गाँव में रहती थी। गाँव में कोई स्कूल नहीं था, और यहाँ तक कि डॉक्टर भी नहीं था। आरोही हमेशा से डॉक्टर बनकर गाँव के लोगों की सेवा करना चाहती थी। लेकिन गाँव के लोगों का मानना था कि लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना बेकार है।
एक सर्द शिवरात्रि की रात, आरोही अकेली शिव मंदिर गई। निराश होकर, उसने भगवान शिव से अपनी शिक्षा पूरी करने और डॉक्टर बनने में मदद करने का आग्रह किया। उसने पूरी रात मंदिर में प्रार्थना की और अगले दिन सुबह जल्दी उठी।
जब वह घर लौटी, तो उसे एक अजनबी महिला गाँव में घूमते हुए दिखाई दी। महिला एक शिक्षिका थी, जो गाँव में स्कूल खोलने के लिए आई थी। आरोही शिक्षिका की सहायक बनी और कुछ ही समय में वह खुद भी पढ़ना-लिखना सीख गई।
कुछ सालों बाद, आरोही शहर चली गई और मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। रास्ते में कई मुश्किलें आईं, लेकिन आरोही ने हार नहीं मानी। आखिरकार, वह एक सफल डॉक्टर बन गई और अपने गाँव वापस लौटी।
शिवरात्रि के दिन, उसने गाँव में एक निःशुल्क चिकित्सालय खोला। गाँव के लोगों ने आरोही का тепло (teplo) से स्वागत किया और उसे गाँव की बेटी बताया। उस दिन आरोही को एहसास हुआ कि भगवान शिव ने शिवरात्रि की उस रात उसकी प्रार्थना सुनी थी।
सीख:
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और भगवान में श्रद्धा सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है। कभी भी अपने सपनों को हार ना मानें, क्योंकि प्रभु हमेशा हमारी राह आसान बनाते हैं।