एक छोटे से गाँव में मीरा नाम की एक लड़की रहती थी। मीरा का सपना था कि वह एक मशहूर पेंटर बने। बचपन से ही उसे चित्रकारी का बहुत शौक था। वह पेड़ों, फूलों और आसमान को अपने कैनवास पर उतारना चाहती थी।
लेकिन मीरा के परिवार की स्थिति ठीक नहीं थी. उसके माता-पिता का मानना था कि लड़कियों को पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा जरूरी घर संभालना सीखना है। मीरा को छुप-छुप कर ही कागज के टुकड़ों पर रंग भरने का मौका मिलता था।
एक दिन गाँव में एक प्रसिद्ध कलाकार की प्रदर्शनी लगी। मीरा ने किसी तरह से उस प्रदर्शनी को देखने के लिए अनुमति ली। वहाँ जाकर वह रंगों के जादू में खो सी गई। विभिन्न चित्रों को देखते हुए उसकी आँखों में चमक थी, पर साथ ही उसके दिल में मलाल भी था कि वह कभी ऐसे खूबसूरत चित्र नहीं बना पाएगी।
प्रदर्शनी से लौटते हुए मीरा रास्ते में रो पड़ी। उसी समय एक बूढ़े व्यक्ति ने उसे रोते हुए देखा और वजह पूछी। मीरा ने उन्हें अपना सपना और उसकी विवशता बताई। बूढ़े व्यक्ति ने ध्यान से सुना और फिर मीरा को एक टूटी टहनी दी।
मीरा को समझ नहीं आया कि यह टहनी उसे क्यों दी गई है। बूढ़े व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, जिंदगी भी इसी टूटी टहनी की तरह होती है। कभी-कभी हवाओं के झोंकों और तूफानों से टूट जाती है, पर टूटना इसका अंत नहीं है। देखो, यह टहनी टूटने के बाद भी सूख नहीं है। इसमें अभी भी नई जिंदगी उगाने की ताकत बाकी है। तुम भी हार मत मानना। अपने सपनों को रंग देना जारी रखो।”
बूढ़े व्यक्ति की बातों ने मीरा को नया हौसला दिया। उसने रास्ते से कुछ कंकड़ पत्थर इकट्ठे किए और घर आकर चारकोल बनाया। रात के अंधेरे में उसने दीवार पर ही चित्र बनाना शुरू कर दिया।
कुछ दिनों बाद गाँव के मुखिया को मीरा की कला के बारे में पता चला। मुखिया कला के जानकार थे। उन्होंने मीरा की बनाई हुई कलाकृतियों को देखकर दंग रह गए। उन्होंने मीरा की प्रतिभा को पहचाना और उसे आगे बढ़ने में मदद की।
धीरे-धीरे मीरा की कला की चर्चा गाँव से बाहर भी होने लगी। आज मीरा एक सफल कलाकार है। उसकी कलाकृतियों की प्रदर्शनियाँ देश-विदेशों में होती हैं। मीरा की कहानी हमें सिखाती है कि हार ना मानने की भावना और कड़ी मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है।