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motivational story ; होलिका दहन रहस्य

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पुराण-कथा है, प्रहलाद नास्तिक राजा हिरण्यकश्यप के यहां जन्म लेता है, और फिर हिरण्यकश्यप अपनी नास्तिकता सिद्ध करने के लिए प्रहलाद को नदी में डुबोता है, पहाड़ से गिरवाता है, और अंत में अपनी बहन होलिका से पूर्णिमा के दिन जलवाता है। और आश्चर्य तो यही है कि वह सभी जगह बच जाता है, और प्रभु का गुणगान गाता है। और तब से इस देश में होली जालाकर होली का उत्सव मनाते हैं, रंग गुलाल डालते हैं, आनंद मनाते हैं। कृपा करके इस पुराण-कथा का मर्म हमें समझाइए।

पुराण इतिहास नहीं है। पुराण महाकाव्य है। पुराण में जो हुआ है, वह कभी हुआ है ऐसा नहीं, वरन सदा होता रहता है। तो पुराण में किन्हीं घटनाओं का अंकन नहीं है, वरन किन्हीं सत्यों की ओर इंगित है। पुराण शाश्वत है।

ऐसा कभी हुआ था कि नास्तिक के घर आस्तिक का जन्म हुआ? ऐसा नहीं; सदा ही नास्तिकता में ही आस्तिकता का जन्म होता है। सदा ही; और होने का उपाय ही नहीं है। आस्तिक की तरह तो कोई पैदा हो ही नहीं सकता; पैदा तो सभी नास्तिक की तरह होते हैं। फिर उसी नास्तिकता में आस्तिकता का फूल लगता है। तो नास्तिकता आस्तिकता की मां है, पिता है। नास्तिकता के गर्भ से ही आस्तिकता का आविर्भाव होता है।

हिरण्यकश्यप कभी हुआ या नहीं, मुझे प्रयोजन नहीं है। व्यर्थ की बातों में मुझे रस नहीं है। प्रहलाद कभी हुए, न हुए, प्रहलाद जानें। लेकिन इतना मुझे पता है, कि पुराण में जिस तरफ इशारा है, वह रोज होता है, प्रतिपल होता है, तुम्हारे भीतर हुआ है, तुम्हारे भीतर हो रहा है। और जब भी कभी मनुष्य होगा, कहीं भी मनुष्य होगा, पुराण का सत्य दोहराया जाएगा। पुराण सार-निचोड़ है; घटनाएं नहीं, इतिहास नहीं, मनुष्य के जीवन का अंतर्निहित सत्य है।

समझो। पहली बात।

साधारणतः तुम समझते हो कि नास्तिक आस्तिक का विरोधी है। वह गलत है। नास्तिक बेचारा विरोधी होगा कैसे! नास्तिकता को आस्तिकता का पता नहीं है। नास्तिकता आस्तिकता से परिचित है, मिलन नहीं हुआ। लेकिन आस्तिकता के विरोध में नहीं हो सकती नास्तिकता, क्योंकि आस्तिकता तो नास्तिकता के भीतर से ही आविर्भूत होती है। नास्तिकता जैसे बीज है और आस्तिकता उसी का अंकुरण है। बीज का अभी अपने अंदर से मिलना नहीं हुआ। हो भी कैसे सकता है? बीज अंकुर से मिलेगा भी कैसे? क्योंकि जब अंकुर होगा तो बीज न होगा। जब तक बीज है तब तक कुछ नहीं है। अकुंर तो तभी होगा जब बीज टूटेगा और भूमि में खो जाएगा। तब अंकुर होगा। जब तक बीज है तब तक अंधकार हो नहीं सकता। यह विरोधाभासी बात समझ लेनी चाहिए।

बीज से ही अंकुर पैदा होता है, लेकिन बीज के विसर्जन से, बीज के खो जाने से, बीज के तिरोहित हो जाने से। बीज अंकुर का विरोधी कैसे हो सकता है! बीज से अंकुर की सुरक्षा है। वह जो खोल बीज की है, वह भीतर अंकुर को ही सम्हाले हुए है–ठीक समय के लिए, ठीक ऋतु के लिए, ठीक अवसर की तलाश में। लेकिन, बीज को अंकुर का कुछ पता नहीं है। अंकुर का पता हो भी नहीं सकता। और इसी अज्ञान में बीज संघर्ष भी कर सकता है अपने को बचाने का–डरेगा, टूट न जाऊं, खो न जाऊं, मिट न जाऊं! भयभीत होगा। उसे पता नहीं कि उसी की मृत्यु से महाजीवन का सूत्र उठेगा। उसे पता नहीं, उसी की राख से फूल आने वाले हैं। पता ही नहीं है। इसलिए बीज क्षमायोग्य है, उस पर नाराज मत होना। दया योग्य है। बीज बचाने की कोशिश करता है। यह स्वाभाविक है अज्ञात में।

हिरण्यकश्यप पिता है। पिता से ही पुत्र आता है। पुत्र पिता में ही छिपा है। पिता बीज है। पुत्र उसी का अंकुर है। हिरण्यकश्यप को भी पता नहीं कि मेरे घर भक्त पैदा होगा। मेरे घर और भक्त! सोच भी नहीं सकता। मेरे प्राणों से आस्तिकता जन्मेगी–इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन प्रहलाद जन्मा हिरण्यकश्यप से। हिरण्यकश्यप ने अपने को बताने की चेष्टा शुरू कर दी। घबरा गया होगा। डरा होगा। यह छोटा-सा अंकुर था प्रहलाद, इससे डर भी क्या था? फिर यह अपना ही था, इससे भय भी क्या था! लेकिन जीवन भर की मान्यताएं, जीवन भर की धारा दांव पर लग गई होंगी।

हर बाप बेटे से लड़ता है। हर बेटा बाप के खिलाफ बगावत करता है। और ऐसा बाप और बेटे का ही सवाल नहीं है–हर आज कल के खिलाफ बगावत है, बीते कल के खिलाफ बगावत है। वर्तमान अतीत से छुटकारे की चेष्टा है। अतीत पिता है, वर्तमान पुत्र है। बीते कल से तुम्हारा आज पैदा हुआ है। बीता कल जा चुका, फिर भी उसकी पकड़ गहरी है; विदा हो चुका, फिर भी तुम्हारी गर्दन पर उसकी फांस है। तुम उससे छूटना चाहते होः अतीत भूल-जाए, विस्मृत हो जाए। पर अतीत तुम्हें ग्रसता है, पकड़ता है।

वर्तमान अतीत के प्रति विद्रोह है। अतीत से ही आता है वर्तमान; लेकिन अतीत से मुक्त न हो तो दब जाएगा, मर जाएगा।

हर बेटा बाप से पार जाने की कोशिश है।
तुम प्रतिपल अपने अतीत से लड़ रहे हो–वह पिता से संघर्ष है।

ऐसा समझो!

सम्प्रदाय अतीत है, धर्म वर्तमान है। इसलिए जब भी कोई धार्मिक व्यक्ति पैदा होगा, सम्प्रदाय से संघर्ष निश्चित है। होगा ही। सम्प्रदाय यानी हिरण्यकश्यप; धर्म यानी प्रहलाद। निश्चित ही हिरण्यकश्यप शक्तिशाली ह, प्रतिष्ठित है। सब ताकत उसके हाथ में है। प्रहलाद की सामर्थ्य क्या है?

नया-नया उगा अंकुर है। कोमल अंकुर है। सारी शक्ति तो अतीत की है, वर्तमान तो अभी-अभी आया है, ताजा-ताजा है। बल क्या है वर्तमान का? पर मजा यही है कि वर्तमान जीतेगा और अतीत हारेगा; क्योंकि वर्तमान जीवन्तता है और अतीत मौत है।

हिरण्यकश्यप के पास सब था–फौज-फांटे थे, पहाड़-पर्वत थे। वह जो चहता, करता। जो चाहा उसने करने की कोशिश भी की, फिर भी हारता गया। शक्ति नहीं जीतती, जीवन जीतता है। प्रतिष्ठा नहीं जीतती, सत्य जीतता है। सम्प्रदाय पुराने हैं।…

इसलिए मैं कहता हूं, पुराण तथ्य नहीं है, सत्य है। तुम अगर यह सिद्ध करने निकल जाओ कि आग जला न पाई प्रहलाद को, तो तुम गलती में पड़ जाओगे, तो तुम भूल में पड़ जाओगे, तो तुम्हारी दृष्टि भ्रान्त हो जाएगी। तुम अगर यह समझो कि पहाड़ से फेंका और चोट न खाई, तो तुम गलती में पड़ जाओगे। नहीं, बात गहरी है, इससे कहीं बहुत गहरी है। यह कोई ऊपर की चोटों की बात नहीं है। क्योंकि हम जानते हैं, जीसस को सूली लगी, जीसस मर गए। सुकरात को जहर दिया, सुकरात मर गए। मंसूर को काटा, मंसूर मर गया। लेकिन मरा सच में या प्रतीत हुआ कि मर गए? जीसस अब भी जिंदा है–मारनेवाले मर गए। सुकरात अभी भी जिंदा है–जहर पिलाने वालों का कोई पता नहीं।

सुकरात ने कहा था–जिन्होंने उसे जहर दिया–कि ध्यान रखो कि तुम मुझे मारकर भी न मार पाओगे; और तुम्हारे नाम की अगर कोई याद रहेगी तो सिर्फ मेरे साथ, कि तुमने मुझे जहर दिया था, तुम जियोगे भी तो मेरे नाम के साथ। निश्चित ही आज सुकरात के मारने वालों का अगर कहीं कोई नाम है तो बस इतना ही कि सुकरात को उन्होंने मारा था।…

क्या बल है निर्बल का? निर्बल के बलराम! कुछ एक शक्ति है, जो व्यक्ति की नहीं है, परमात्मा की है। वही तो भक्त का अर्थ है। भक्त का अर्थ हैः जिसने कहा, “मैं नहीं हूं, तू है”! भक्त ने कहा, “अब जले तो तू जलेगा; मरे तो तू मरेगा; हारे तो तू हारेगा; जीते तो तू जीतेगा। हम बीच से हटे जाते हैं।

भक्त का इतना ही अर्थ है कि भक्त बांस की पोंगरी की भांति हो गया; भगवान से कहता है, “गाना हो गा लो, न गना हो न गाओ–गीत तुम्हारे हैं! मैं सिर्फ बांस की पोंगरी हूं। तुम खाओगे तो बांसुरी जैसा मालूम होता; तुम न जाओगे तो बांस की पोंगरी रह जाऊंगा। गीत तुम्हारे हैं, मेरा कुछ भी नहीं। हां, अगर गीत में कोई बाधा पड़े, सुर भंग हो, तो मेरी भूल समझ लेना–बांस की पोंगरी कहीं इरछी-तिरछी है; जो मिला था उसे ठीक-ठीक बाहर न ला पाई; जो पाया था उसे अभिव्यक्त न कर पाई। भूल अगर हो जाए तो मेरी समझ लेना। लेकिन अगर कुछ और हो, सब तुम्हारा है”।

भक्त का इतना ही अर्थ है।

नास्तिकता में ही आस्तिक पैदा होगा। तुम सभी नास्तिक हो। हिरण्यकश्यप बाहर नहीं है, न ही प्रहलाद बाहर है। हिरण्यकश्यप और प्रहलाद दो नहीं हैं–प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटनेवाली दो घटनाएं हैं। जब तक तुम्हारे मन में संदेह है–हिरण्यकश्यप है–तब तक तुम्हारे भीतर उठते श्रद्धा के अंकुरों को तुम पहाड़ों से गिराओगे, पत्थरों से दबाओगे, पानी में डुबाओगे, आग में जलाओगे–लेकिन तुम जला न पाओगे। उनको जलाने की कोशिश में तुम्हारे ही हाथ जल जाएंगे।

कितनी बार नहीं तुम्हारे मन में श्रद्धा का भाव उठता है, संदेह झपटकर पकड़ लेता है। कितनी बार नहीं तुम किनारे-किनारे आ जाते हो छलांग लगाने के, संदेह पैर में जंजीर बनकर रोक लेता है, क्या कर रहे हो! कुछ घर-द्वार की सूची! कुछ परिवारों की सूची! कुछ धन, प्रतिष्ठा, पद की सूची! कुछ संसार की सोच! क्या कर रहे हो? पैर रुक जाते हैं। सोचते हो, कल कर लेंगे, इतनी जल्दी क्या है!

क्रांति कितनी बार तुम्हारे भीतर नहीं उन्मेष लेती है! कितनी बार नहीं तुम्हारे भीतर क्रांति का झंझावात आता है–और तुम बार-बार संदेह का साथ पकड़कर रुक जाते हो! यह तुम अपने भीतर खोजो। यह कथा कुछ पुराण में खोजने की नहीं है। यह तुम्हारे प्राण में खोजने की है। यह पुराण तुम्हारे प्राणों में लिखा हुआ है।

– ओशो

होलिका दहन पर उपाय
होलिका दहन पर कुछ उपाय करने से आपके जीवन में बदलाव आ सकते हैं।
1–जिन जातकों को लंबे समय से आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है उन सभी को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल डालकर दो मुखी दीपक जलाने से आर्थिक परेशानियां दूर होंगी।
2–जिन जातकों को लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां ग्रसित कर रही हों उन सभी को होलिका दहन के समय अग्नि के सात फेरे लगाकर होलिका दहन की राख से तिलक करना चाहिए। स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेंगे।
3– लंबे समय से तनाव से ग्रस्त जातकों को होलिका दहन के दिन सफेद वस्तुओं का दान करना शुभ रहेगा इसके अतिरिक्त चंद्र दर्शन करना शुभ फल कारक रहेगा।
4–होली की भस्म का टीका लगाने से दृष्टि दोष तथा प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है।
5–होलिका दहन की अग्नि के दर्शन एवं परिक्रमा करने से राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं

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