* मेवाड़ी ख्यातों के अनुसार महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी में तीरों के अलावा 7 गहरे घाव लगे
(3 भाले से, 3 तलवार से, 1 बन्दूक की गोली)
* तबकात-ए-अकबरी में निजामुद्दीन अहमद बख्शी लिखता है
“राणा कीका तब तक बड़ी बहादुरी से लड़ता रहा, जब तक कि वह तीरों और बालों की चोटों से जख्मी न हो गया”
* ‘अकबरी दरबार’ में मौलाना मुहम्मद हुसैन आजाद लिखता है
“नमक हलाल मुगल और मेवाड़ के सूरमा ऐसे जान तोड़ कर लड़ा कि हल्दीघाटी के पत्थर इंकार हो गए | पर मेवाड़ी फौज की बहादुरी उस फौज के सामने कब तक टिकती, जिसमें अनगिनत तोपें और रहें आग बरसाता थीं और ऊँटों के रिसाले आंधी की तरह दौड़ते थे”
“स्वामिभक्त चेतक का बलिदान”
> महाराणा प्रताप इस बात से अनजान थे कि जख्मी चेतक महज 3 पैरों पर चल रहा है | आगे एक 22 फीट का नाला आ गया |
> अपने स्वामी की जान बचाने के बाद चेतक ने एक इमली के पेड़ के नीचे अपना बलिदान दे दिया, तब से इस इमली का नाम “खोड़ी इमली” पड़ गया | माना जाता है कि आज भी इस इमली का ठूंठ मौजूद है |
> इस तरह महाराणा प्रताप और चेतक का साथ चार वर्ष (1572-76 ई.) तक रहा
> बलीचा गाँव में स्वामिभक्त चेतक की समाधि स्थित है
“महाराणा प्रताप व महाराजा शक्ति सिंह का मिलन”
> महाराणा प्रताप के पीछे आ रहे खुरासन खां और मुल्तान खान को मारकर शक्ति सिंह जी ने महाराणा से भेंट की व माफी मांगी
(हालांकि इस समय महाराणा प्रताप अकेले नहीं थे | उनके साथ कुछ सामन्त भी थे | महाराज शक्तिसिंह जी ने इस घटना के बाद 18 वर्षों तक महाराणा प्रताप का साथ दिया)
> महाराणा प्रताप, शक्ति सिंह जी व सामंतों ने स्वामिभक्त चेतक का अंतिम संस्कार किया
* महाराणा प्रताप घायल अवस्था में एक मूर्ति के पास आकर रुके | ये मूर्ति हरिहर (भगवान शिव व भगवान विष्णु के सम्मिलित रूप) की थी | ये मूर्ति वर्तमान में हरिहर मंदिर में स्थापित है |
महाराणा प्रताप ने इसी मूर्ति के पास बैठकर विश्राम किया और यहीं पर उन्हें सूचना मिली की झाला मान/झाला बिन्दा वीरगति को प्राप्त हुए | महाराणा प्रताप ने झाला मोहन/झाला बिन्दा की याद में उस स्थान का नाम “बिदराजा” रख दिया, जो कालांतर में “बदराणा” हो गया | इस स्थान पर इस मूर्ति की स्थापना कराकर महाराणा प्रताप ने हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया |
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