किसी तालाब के किनारे एक कछुवा रहता था और उसी तालाब में दो हंस भी रहते थे, जिस कारण हंस और कछुवे में दोस्ती हो गयी थी। हंस दूर-दूर तक उड़कर जाते और मुनियों ज्ञानियों की बाते सुनते और सारा ज्ञान कछुवे को भी देते, लेकिन कछुवा बहुत ही बोलता था। वह एक मिनट के लिए चुप नहीं रह पाता था। एक दिन हंसो ने सुना की यहां अब सुखा पड़ने वाला है तो यह बात तुरंत कछुवे को भी बताई और कछुवा उनसे अपनी जान बचाने को बोला। हंस उसकी जान बचाने के लिए तैयार हो गए। फिर हंस एक लकड़ी की टहनी लेकर आया और बोला दोनों किनारों से हम अपने चोच से पकड़ते है, तुम बीच में अपने दांतों से लकड़ी को पकड़ लेना इस प्रकार उड़कर दुसरे दूर तालाब में चले जायेगे। लेकिन एक बात का ध्यान रखना बीच में कही नहीं बोलना है। कछुवे ने हामी भर दी और हंस कछुवे को लेकर उड़ने लगे। रास्ते में गांव में यह नजारा बच्चो ने देखा तो चिल्लाने लगे की वो देखो कछुवा उड़ रहा है। कछुवा बच्चो की आवाज सुनकर चुप ना रह सका और बोलने के लिए अपना मुंह खोल दिया और जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गयी।
शिक्षा: हमे कुछ भी बोलने से पहले वहां की परिस्थिति को समझ लेना चाहिए, क्योंकि बिना किसी कारण के बार-बार बोलना भी कभी-कभी बहुत महंगा पड़ता है। इसलिए अक्सर कहा भी जाता है हमें उतना ही बोलना चाहिए जहां जितनी ही जरूरत हो।