यूनान के महान दार्शनिक सुकरात के पास एक व्यक्ति आया और बोला, ‘मैंने आपके दोस्त के बारे में ऐसी बात सुनी कि आप चकित रह जाएंगे?’ सुकरात ने कहा, एक मिनट ठहरो। मेरे दोस्त के बारे में कुछ भी बताने से पहले मैं तुमसे कुछ सवाल करना चाहता हूं। वह व्यक्ति आश्चर्यचकित रह गया।
सुकरात ने पूछा, क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि जो तुम कहने जा रहे हो, वह सत्य है? वह व्यक्ति बोला, ‘नहीं, मैंने यह किसी से सुना है।’ सुकरात ने कहा, तो तुम विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि यह सत्य है या असत्य।
अब दूसरा प्रश्न, ‘जो बात तुम मेरे दोस्त के बारे में कहने जा रहे हो, क्या वह कुछ अच्छा है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘नहीं, मैं आपके दोस्त के बारे में कुछ बुरा बताने जा रहा हूं।’ सुकरात ने कहा, तुम मुझे कुछ बुरा बताने वाले हो, लेकिन तुम आश्वस्त नहीं हो कि वह सत्य है।
कोई बात नहीं, आखिरी प्रश्न यह है – ‘मेरे दोस्त के बारे में जो बताने वाले हो, क्या वह मेरे लिए उपयोगी है?’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘कुछ खास नहीं।’ सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा, ‘जो तुम बताने वाले हो वह न तो सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर उसे सुनने का क्या लाभ?’ इसके बाद सुकरात अपने काम में व्यस्त हो गए।
इस घटना से क्या सीख मिलती है…
कोई भी बात कहने से पहले यह जांच लें कि वह सत्य हो, उसका अच्छा प्रभाव हो और वह उपयोगी भी हो।