बहुत समय पहले की बात है, एक राजा अत्यन्त विनम्र और दानी था। अपनी प्रजा से उसे बहुत प्रेम था और सदैव उसके सुख-दुख का ध्यान रखता था। इन्हीं गुणों के कारण उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। दुर्भाग्य से राजा का पुत्र प्रकृति में अपने पिता से बिल्कुल विपरीत था। उसे किसी की कोई चिंता नहीं थी। उसके दुष्टतापूर्ण व्यवहार से राजा और प्रजा दोनों ही परेशान थे।
ज्ञान देने के लिए दूर-दूर से बुलाए विद्वान
उसके पुत्र को सुधारने एवं सही मार्ग पर लाने का बहुत प्रयास किया, परन्तु असफल रहा। उसे ज्ञान देने हेतु दूर-दूर से विद्वान एवं मनीषी बुलाए, परन्तु दुष्ट बालक के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि आयु बढने के साथ-साथ उसके दुगुणों में वृद्धि ही होती गई। सौभाग्य से एक दिन महात्मा बुद्ध भी, उस राजकुमार को सही मार्ग पर लाने की चेष्टा से उसके पास आए। उन्होंने न तो उसे डराया-धमकाया न बुरा-भला कहा बल्कि स्नेह से एक नीम के पौधे के पास ले गए और राजकुमार से उस पौधे का एक पत्ता चखने को कहा।
महात्मा बुद्ध ने भी बच्चे को सुधारने की चेष्टा रखी
नीम के पत्ते को खाने से राजकुमार का मुँह कङवा हो गया और क्रोध में आकर उसने उस पौधे को उसी समय उखाड़ कर फेंक दिया। महात्मा बुद्ध ने उससे कहा -’’राजकुमार तुमने पौधे को उखाड़ कर क्यों फेंक दिया। राजकुमार ने उत्तर दिया कि अभी से इस पौधे के पत्ते इतने कङवे हैं, बड़े होने पर तो वे बिलकुल ही विषैले हो जाएंगे, इसलिए इसको जड़ से उखाड़ देना ही उचित है।
विषैले पेड़ से की उसके व्यवहार की तुलना
राजकुमार की बात सुनकर महात्मा बुद्ध ने गंभीर होकर कहा -’’तुम्हारे कङवे व्यवहार से राज्य की जनता भी बहुत पीड़ित है। यदि तुम्हारी ही नीति जनता भी काम में ले तो तुम्हारी क्या दशा होगी।’’ अतः यदि तुम भी कुछ नाम और यश कमाना चाहते हो तो अपने पूज्य पिताजी की भांति स्वभाव में मीठापन लाओ, प्रजा से स्नेह का व्यवहार करो और सुख-दुख में उसका साथ दो।
कहानी से मिली सीख :महात्मा जी की सीख से राजकुमार पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह अपने पुराने व्यवहार के लिए लज्जित होने लगा। उसी दिन से राजकुमार में गम्भीर परिवर्तन आ गया और दुष्टता त्याग कर उसने भलाई की राह पर चलना प्रारम्भ कर दिया।।
अपने कर्मों को सुधारें, न की वो काम करें जिससे दूसरों को दुख व तकलीफ पहुंचे |