विक्रम अपने गाँव में एक अलग ही नजर से देखा जाता था। जहाँ गाँव के बाकी लोग सूखे की मार झेल रहे थे और उम्मीद खो चुके थे, वहीं विक्रम हार मानने को तैयार नहीं था। उसके पास एक छोटा खेत था, जिसे गाँव वाले “बेकार ज़मीन” कहते थे, मानो वहाँ कुछ भी उगाना असंभव था।
लेकिन विक्रम ने हार नहीं मानी। उसने पुरानी किताबों से खेती के नए तरीके सीखे, मिट्टी परीक्षण कराया और पानी के बेहतर इस्तेमाल के उपाय खोजे। उसने अपने खेत में सूखारोधी फसलें उगाईं, वर्षा जल संचयन किया और खाद बनाने के प्राकृतिक तरीके अपनाए।
शुरू में गाँव वालों ने विक्रम का उपहास किया। वे उसे पागल समझते थे। लेकिन जब उन्होंने देखा कि विक्रम का खेत हरा-भरा हो गया है और वह अच्छी फसल उगा रहा है, तो उनकी सोच बदलने लगी। रामू, जो विक्रम का पड़ोसी था और हमेशा निराशा में डूबा रहता था, वह भी विक्रम से खेती के गुर सीखने लगा।
धीरे-धीरे पूरे गाँव में बदलाव आया। विक्रम ने दूसरों को भी अपने खेतों में नए तरीके अपनाने के लिए प्रेरित किया। गाँव वाले मिलकर काम करने लगे, पानी का बेहतर इस्तेमाल किया और सूखारोधी खेती अपनाई। कुछ ही समय में गाँव का सूखा दूर हो गया और वहाँ हरियाली लौट आई।
विक्रम की कहानी पूरे जिले में फैल गई। वह अन्य गाँवों में भी जाकर लोगों को खेती के नए तरीके सिखाने लगा। वह एक प्रेरणा बन गया, यह साबित करते हुए कि हार न मानने की भावना और मेहनत से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।