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लोकसभा में एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक: समर्थन और विरोध में कौन हैं?

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लोकसभा में मंगलवार को पेश किए जाने वाले ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयकों ने भाजपा और विपक्षी दलों के बीच एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। भाजपा और उसके सहयोगियों ने इन विधेयकों का समर्थन किया है, जबकि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शिवसेना (यूबीटी) जैसे कई विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। तटस्थ दलों जैसे जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी ने भी इस विधेयक का समर्थन किया है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की अनुमति देगा।

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का विरोध

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने इस विधेयक को संविधान विरोधी बताया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा कि पार्टी विधेयकों का “दृढ़ता से और व्यापक रूप से” विरोध करेगी। उनका कहना था, “भा.ज.पा. का असली उद्देश्य एक नया संविधान लाना है, जो लोकतंत्र और जवाबदेही को खत्म करेगा।” समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इसे संविधान को नष्ट करने की साजिश करार दिया।

शिवसेना (यूबीटी) का विरोध

शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कांग्रेस की बात दोहराई और कहा कि यह विधेयक संविधान पर हमला है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सत्ता का केंद्रीकरण करना चाहती है और यह चुनाव प्रक्रिया में छेड़छाड़ है। उनका कहना था कि वे इस विधेयक का विरोध करेंगे क्योंकि इसके लागत प्रभावी होने पर भी इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

डीएमके का विरोध

डीएमके के सुप्रीमो और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि उनके सांसद भी इस विधेयक का विरोध करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा का असली उद्देश्य राष्ट्रपति शासन प्रणाली को लागू करना है। उनका कहना था कि अगर यह विधेयक पारित हो जाता है, तो यह राज्य चुनावों को समाप्त कर देगा और क्षेत्रीय भावनाओं को कमजोर करेगा।

विधेयकों की प्रकृति और संभावना

संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024, जिसे ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक कहा जाता है, और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन विधेयक), 2024 को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा लोकसभा में पेश किया जाएगा। इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति में भेजे जाने की संभावना है, जहां व्यापक विचार-विमर्श के बाद इन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।

इस विधेयक को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है, और आगे इसका परिणाम देश के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित कर सकता है।

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