राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत के एक बयान ने हाल ही में महाराष्ट्र की सियासत में नया विवाद खड़ा कर दिया है। पुणे में ‘तंजावुर के मराठा’ नामक किताब के विमोचन के दौरान, भागवत ने दावा किया कि स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने शिवाजी महाराज की समाधि की खोज की थी। इस टिप्पणी के बाद से विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक नेताओं ने प्रतिक्रियाएं दी हैं, और इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई है।
1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, उनका अंतिम संस्कार रायगढ़ किले में किया गया था और वहां उनकी समाधि बनाई गई थी। लेकिन, समाधि की स्थिति पर कोई समकालीन रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। 1689 से 1733 तक किले पर मुगलों का कब्जा रहा और मराठों ने 1733 में पुनः किले पर कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सेना ने 1818 में किले पर आक्रमण किया, जिससे समाधि सहित कई संरचनाओं को नुकसान पहुंचा।
ब्रिटिश लेखक जेम्स डगलस ने अपनी 1883 की पुस्तक में रायगढ़ किले की यात्रा का वर्णन करते हुए शिवाजी की समाधि की उपेक्षा की बात कही। उन्होंने मराठा शासकों की समाधि के प्रति उपेक्षा के बारे में भी सवाल उठाया।
राज ठाकरे ने 2022 में दावा किया था कि तिलक ने शिवाजी की समाधि का निर्माण कराया था, जबकि रोहित तिलक ने कहा कि फुले ने समाधि की खोज की थी और तिलक ने इसके जीर्णोद्धार की प्रक्रिया शुरू की थी। ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि अंग्रेजों को समाधि के स्थान के बारे में जानकारी थी, लेकिन वे वहां अक्सर नहीं जाते थे। 1869 में ज्योतिराव फुले ने समाधि का दौरा किया था और फुले ने जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया और ओबीसी समुदाय के सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित किया।
मोहन भागवत के बयान के बाद छगन भुजबल और अन्य नेताओं ने तिलक के बजाय फुले को समाधि की खोज का श्रेय देने की मांग की। भागवत के बयान को लेकर आरोप लगाया जा रहा है कि यह हिंदुत्व की साजिश का हिस्सा हो सकता है और तिलक का नाम लेना इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश है। इतिहासकारों का कहना है कि तिलक की समाधि की खोज के संबंध में कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, और तिलक ने 1895 के बाद केवल स्मारक के लिए धन जुटाया था, जिसे बाद में पूरा नहीं किया जा सका।
यह विवाद शिवाजी महाराज की समाधि की खोज के असली श्रेय और मराठा इतिहास की घटनाओं को लेकर मौजूदा सियासत और सामाजिक बहस को उजागर करता है।