नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) : हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस तरह से हर माह में दो प्रदोष व्रत आते हैं। प्रदोष व्रत शिव जी को समर्पित होता है। प्रत्येक प्रदोष व्रत का नाम सप्ताह के दिन के अनुसार होता है और इसके फल की प्राप्ति भी उसी के अनुसार बढ़ जाती है।
प्रदोष व्रत के दिन व्रत रखकर शिव जी के साथ मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा व व्रत करने से शिव जी की कृपा प्राप्त होती है और वे अपने भक्तों के समस्त संकटों को दूर कर देते हैं। इस व्रत को करने भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपके परिवार में सुख-शांति व समृद्धि आती है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
- प्रदोष व्रत वाले दिन सबसे पहले सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें।
- इसके बाद शिव जी को याद करके व्रत एवं पूजा का संकल्प लें।
- फिर शाम के शुभ मुहूर्त में किसी शिव मंदिर जाकर या घर पर ही भगवान भोलेनाथ की विधिपूर्वक पूजा करें।
- पूजा के दौरान शिवलिंग को गंगाजल और गाय के दूध से स्नान कराएं।
- उसके बाद सफेद चंदन का लेप लगाएं। महादेव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी का पत्ता, सफेद फूल, शहद, भस्म, शक्कर आदि अर्पित करें।
- इस दौरान ”ओम नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करते रहें।
- इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें और बुध प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें। फिर घी का दीपक जलाएं और शिव जी की आरती करें।
- इसके बाद पूजा का समापन क्षमा प्रार्थना से करते हुए शिवजी के सामने अपनी मनोकामना व्यक्त कर दें।
- इसके अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद फिर से शिव जी की पूजा करें। फिर सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।