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Ram Mandir : 22 जनवरी को भगवान राम के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा: भक्तों की अदृश्य संघर्ष की कहानी

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नई दिल्ली,(नेशनल थॉट्स ) : 496 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद, 22 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति का ऐतिहासिक भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। इस महत्वपूर्ण समय पर सभी राम भक्तों की याचना है कि वे अपने भक्तों का मान बढ़ाने हेतु प्रकट हो रहे हैं।


अध्यात्मिक दृष्टिकोण से, प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है कि भगवान राम स्वयं चेतनावस्था में मंदिर में उपस्थित हो रहे हैं। चौदह वर्ष के वनवास के बाद, अयोध्या को 496 वर्ष का वनवास झेलना पड़ा, और अब भगवान राम की अयोध्या फिर से राममय हो रही है।

अयोध्या की सड़कें, फ्लाईओवर, बाजार, और कोने-कोने में राम की अयोध्या बनाने का कार्य जोरों पर है, और इस अद्वितीय प्रयास के बावजूद, अयोध्या के मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस महत्वपूर्ण क्षण को धार्मिक एकता के रूप में स्वीकार कर रहे हैं।

पद्म पुराण में भगवान शिव के वचन के अनुसार, “राम-राम” का जाप करने से कोई भी सुखद रूप से साकेत लोक में रहने वाले राम तक पहुंच सकता है। सोशल नेटवर्क पर “जय श्री राम” का नारा प्रतिदिन 200 करोड़ से भी अधिक बार लिखा जाता है, जो इस महामंत्र की भरपूर शक्ति को दर्शाता है।

 
भगवान राम: त्रेता युग के अजेय के रूप में

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व अयोध्या में हुआ था। भगवान राम, त्रेता युग के अजेय, ने धर्म के माध्यम से उत्कृष्ट राज्य प्राप्त किया, जिसे आज भी राम राज्य कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में वर्णित किया है कि भगवान श्री राम का चेहरा चंद्रमा की तरह चमकीला, सौम्य, कोमल और सुंदर था। उनकी आंखें कमल की भांति खूबसूरत और बड़ी थीं, नाक लंबी और सुडौल थी, और होठ लाल थे जैसे सूर्य का रंग, जो इनको अद्वितीय बना देता है।

इस अद्वितीय सौंदर्य के साथ, प्रत्येक रामभक्त अपने मन-मस्तिष्क में भगवान राम को बहुत गहरे रूप से महसूस करता है, और इस प्राचीन धरोहर के साथ जुड़े हुए प्राणों से उन्हें अयोध्या से बाहर कैसे विचलित किया जा सकता है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद से पहले प्राचीन राम मंदिर था, जो 1528 ई. में बाबर द्वारा नष्ट किया गया। मस्जिद की जगह पर बनाई गई थी, लेकिन राम भक्तों के संघर्षों की यह कहानी राम मंदिर के लिए अनमोल साक्ष्य बना देती है, जिसमें महात्मा श्याम नंद जी महाराज की अद्वितीय भूमिका थी।
 

अयोध्या में स्वतंत्रता संग्राम: सन् 1528
ब्रिटिश इतिहासकार कनिंघम ने अपने ‘लखनऊ गजेटियर’ के 66वें अंक के पृष्ठ 3 पर एक रोमांचक घटना का वर्णन किया है, जिसमें सेनापति मीर बाकी ने अपने मंदिर ध्वस्त करने के अभियान में सफलता प्राप्त की थी, और 1,74,000 हिन्दुओं की लाशें गिर जाने का उल्लेख है। यह समय था जब अयोध्या से 6 मील की दूरी पर स्थित सनेथू गांव के पं. देवीदीन पाण्डेय ने गांवों के सूर्यवंशी क्षत्रियों को मोबाइलाइज किया और बाबर के खिलाफ उत्साहित किया। उन्होंने बाबर की सेना के खिलाफ युद्ध किया और हजारों हिन्दू शहीद हो गए, लेकिन प्रेरणा बनी रही।
महाराज रणविजय सिंह ने भी हंसवर के राजा के रूप में अद्वितीय साहस दिखाया और मीरबाकी के खिलाफ वीरगति का सामर्थ्य प्रदर्शित किया। हालांकि, उनकी बलिदानी सेना के साथ भी जन्मभूमि पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया। इस संघर्ष के बाद भी हिंदू समुदाय अपने आराध्य राम को यहां बुलाने के लिए संघर्षरत रहा और उसकी शक्ति से चिरपिंग। यह कहानी अकबर के राजमर्श कौशल से जुड़ी है, जो चबूतरे पर छोटा-सा मंदिर बनवाकर युद्ध को शांति में बदलने का कारगर उपाय अपनाया था। इसके बाद भी संघर्ष जारी रहा, परन्तु चबूतरे का यह विचार अच्छूत रहा।


किंतु धर्मांध औरंगजेब ने तो भारत के हर हिन्दू मंदिर को नष्ट करने की जैसे कसम ही खा रखी थी तो अकबर का बनवाया वह छोटा सा सांकेतिक मंदिर वाला चबूतरा भी ढहा दिया गया . उसने लगभग 10 बार अयोध्या में मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाकर यहां के सभी प्रमुख मंदिरों बौद्ध ,जैन मंदिर और उनकी मूर्तियों को तोड़ डाला. औरंगजेब के समय में समर्थ गुरु श्री रामदास जी महाराज के शिष्य श्री वैष्णव दास जी ने जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए 30 बार आक्रमण किए किंतु औरंगजेब की सैन्य ताकत के आगे सफल नहीं हो सके.
 
 नासिरुद्दीन हैदर के समय में मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुन: अपने रूप में लाने के लिए हिन्दुओं के तीन आक्रमण हुए जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दू मारे गए. इस हिन्दू सेना का सहयोग वीर चिमटा धारी साधुओं की संन्यासी सेना ने भी किया परिणामस्वरूप इस युद्ध में शाही सेना को हारना पड़ा और जन्मभूमि पर पुन: हिन्दुओं का कब्जा हो गया. लेकिन कुछ दिनों के बाद विशाल शाही सेना ने पुन: जन्मभूमि पर अधिकार कर हजारों राम भक्तों का कत्ल कर दिया .

1853: हिन्दुओं का संघर्ष अयोध्या के लिए
नवाब वाजिद अली शाह के समय में, 1853 में, हिन्दुओं ने एक बार फिर जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया। इस घड़ी में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की, जिसमें सेना और आम लोग भी भाग लिया। आरोप था कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। इस संघर्ष में हिंदुओं ने श्रीराम जन्मभूमि पर कब्जा कर और औरंगजेब द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को पुनः बनाया।
इस संघर्ष के बाद भी यही युद्ध जारी रहा, लेकिन चबूतरे पर बनाए गए छोटे से मंदिर में फिर से रामलला की स्थापना की गई। हालांकि, मुगल राजा ने इस पर पुनर्निर्माण का अधिकार कर लिया। 1857 के बाद राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए एक और अभियान चलाया गया, जिसमें ब्रिटिश शासकों ने विवादित स्थल पर बाढ़ लगा दी और प्रार्थना करने की अनुमति दी। इसके बाद भी इतिहास में आक्रांताओं की सेना के सामने राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का कोई सफल प्रयास नहीं हुआ.

 
 19 जनवरी 1885: हिन्दू-मुस्लिम विवाद की शुरुआत

हिन्दू महंत रघुवीर दास ने 19 जनवरी 1885 को फैजाबाद के न्यायाधीश पं. हरिकिशन के सामने एक ऐतिहासिक मामले को उजागर किया। उन्होंने मामले में कहा कि श्री राम का जन्मस्थान है और मस्जिद की जगह पर मंदिर बनना चाहिए। 1947 में, भारत सरकार ने मुसलमानों को विवादित स्थल से दूर रहने का आदेश जारी किया और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया गया, हिंदुओं को अलग स्थान से प्रवेश दिया गया।

1949 में, भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं, जिसका परिणामस्वरूप विवाद बढ़ा। 1984 में, भगवान राम के जन्मस्थल को ‘मुक्त’ करने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने एक समिति गठित की। 1989 में, विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान की शुरुआत की, जिससे विवादित स्थल पर राम मंदिर की नींव रखी गई। इस दौरान होने वाले घटनाक्रम ने देशभर में रामभक्ति को मजबूती से जोड़ा और जय श्री राम का नारा शक्ति का प्रतीक बना दिया।

 

अयोध्या: एक ऐतिहासिक परिवर्तन की कहानी

30 अक्टूबर 1990: राम भक्तों का पैदल पथ : हजारों राम भक्तों ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की चुनौती को स्वीकार करते हुए गिरफ्तारी से बचते हुए सरयू नदी को तैरकर पार करके अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहराया।
2 नवंबर 1990: कारसेवकों पर गोली चलाई गई : मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें सैकड़ों राम भक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। इस हत्याकांड के बाद, अप्रैल 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।

6 दिसंबर 1992: बाबरी ढांचा ढहा दिया : लाखों रामभक्त ने 6 दिसंबर को अयोध्या पहुंचे कारसेवक किया और बाबरी ढांचा ढहा दिया, जिससे देशभर में दंगे हुए। इसी मसले पर विभिन्न नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाया गया।

5 अगस्त 2020: भूमिपूजन और नया आरंभ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण स्थल पर भूमिपूजन अनुष्ठान किया और अयोध्या मंदिर का निर्माण आरंभ किया।

 
विश्व हिन्दू परिषद के नेतृत्व में राम जन्मभूमि परिसर 108 एकड़ में मंदिर का कार्य पूर्णता की ओर तेजी से बढ़ रहा है. राम भक्तों ने अपने रामलला के लिए धन के भंडार खोल दिये हैं . कोई अपनी जन्मभर की पूंजी मंदिर के नाम कर रहा है कोई अपने जेवरात मंदिर में चढ़ा रहा है. कोई दस रुपये का सहयोग कर रहा है कोई दस करोड़ का. कहीं भगवान राम की एक किलो सोना व सात किलो चांदी की चरण-पादुकाएं तैयार हो रही है तो कहीं रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एस. लक्ष्मी नारायण जैसे राम भक्त है जिनके द्वारा अर्पित की जा रही रामचरितमानस में 10,902 पदों वाले इस महाकाव्य के सभी पन्ने तांबे से बनाए जाएंगे.

पन्ने को 24 कैरेट सोने में डुबोकर स्वर्ण जड़ित अक्षर लिखकर तैयार किए जाएंगे. इस रामचरितमानस को तैयार करने में 140 किलो तांबा और लगभग सात किलो सोना लगेगा. वहीं मंदिर के सभी 36 दरवाजों पर सोने की परत लगाई जा रही है . बहुत ही सुन्दर , अद्भुत होगा हमारे आराध्य भगवान राम का मंदिर. राशि अनुमान से ज्यादा एकत्रित हो रही है . अब दान देने की बजाय अयोध्या निमंत्रण का आह्वान किया जा रहा है. घर-घर अक्षत (पीले चावल) निमंत्रण हेतु बांटे जा रहे हैं.

रामभक्तों के सहयोग से हजारों करोड़ रुपये एकत्र हो गया है और पवित्र रामकार्य है तो एक-एक पैसे की महत्ता को समझते हुए और सभी राम भक्तों के सहयोग से विश्व का सबसे बड़ा , भव्य , अद्भुत सबका सपना श्री राम अयोध्या मंदिर बनने जा रहा है पूरे 496 वर्षों के बाद.

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