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रानी चेन्नम्मा की जयंती: देश की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़ा महासंग्राम

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आज, 23 अक्टूबर को, भारत की वीरांगना रानी कित्तूर चेन्नम्मा का जन्मदिन है। वह कित्तूर की रानी थीं, जो वर्तमान कर्नाटक में स्थित एक पूर्व रियासत थी। रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ साहसिकता से युद्ध लड़ा, और उनकी वीरता के किस्से आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें इस खास मौके पर।

1857 का युद्ध भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है, लेकिन रानी चेन्नम्मा ने उससे भी पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ अपनी शक्ति दिखाई थी। कित्तूर जैसे छोटे राज्य ने पेशवाओं और मुगलों के अलावा ब्रिटिश साम्राज्य के सामने भी कभी झुकने का साहस नहीं दिखाया। राजा मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद, रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर की सत्ता संभाली और सीमित शक्ति होते हुए भी अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला।

धारवाड़ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कलेक्टर जॉन थैकरे ने 1824 में खजाने की लालच में कित्तूर पर आक्रमण किया। रानी चेन्नम्मा ने अपनी सेना के साथ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और थैकरे को मार गिराया। इस लड़ाई के बाद, रानी का प्रभाव बढ़ा, और उनके राज में बहुत सारे बेशकीमती हीरे-जवाहरात और 15 लाख रुपये नकद मौजूद थे।

पहली हार से नाराज होकर, अंग्रेजों ने दूसरी बार कित्तूर पर हमला किया। इस बार उन्होंने यह बहाना बनाया कि अगर राज्य का शासक सशक्त नहीं है या उसके पास कोई संतान नहीं है, तो उस राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चलाएगी। इसके चलते कई स्थानीय लोगों को राजा बनने का लालच देकर, रानी के खिलाफ साजिश की गई। अंततः रानी चेन्नम्मा को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और उन्हें बंदी बनाकर बैलहोंगल के किले में एकांत कारावास में डाल दिया गया।

रानी चेन्नम्मा का निधन 21 फरवरी 1829 को बीमारी के कारण हुआ। उनकी बहादुरी और संघर्ष की गाथाएं आज भी हमें प्रेरित करती हैं। उनकी जयंती पर, हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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