रतन टाटा, टाटा संस के मानद चेयरमैन, 9 अक्टूबर की रात को दुनिया को अलविदा कह गए। कुछ समय पहले भी उनके बीमार होने की खबरें सामने आई थीं, जिन्हें उन्होंने खारिज करते हुए कहा था कि वो ठीक हैं। लेकिन उनका निधन एक युग के अंत का प्रतीक है। रतन टाटा ने अपने जीवन में कई प्रेरणादायक कहानियां और किस्से छोड़े हैं, जिनमें से एक है 2008 के 26/11 मुंबई आतंकी हमले का।
26 नवंबर 2008 का दिन भारत के इतिहास में एक काले दिन के रूप में दर्ज है। लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने मुंबई में ताज होटल समेत कई जगहों पर हमला किया, जिसमें 160 से अधिक लोगों की जान गई और 300 से अधिक घायल हुए। इस हमले की भयावहता आज भी लोगों को सिहरने पर मजबूर कर देती है।
रतन टाटा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें 26/11 के दिन किसी ने कॉल कर के बताया कि ताज होटल में आतंकी हमला हो गया है। जैसे ही उन्होंने यह सुना, उन्होंने अपने स्टाफ को कॉल किया, लेकिन फोन नहीं उठा। इस बात से वे चिंतित हो गए और तुरंत ताज होटल की ओर रवाना हो गए।
रतन टाटा ताज होटल को अपनी विरासत मानते थे, क्योंकि यह उनके दादाजी का बनाया हुआ था। जब वे ताज पहुंचे, तो वहां के सुरक्षा गार्ड ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया, क्योंकि होटल में गोलीबारी हो रही थी। रतन टाटा ने सुरक्षाकर्मियों से कहा, “अगर जरूरत पड़े, तो मेरी पूरी प्रॉपर्टी बम से उड़ा दो, लेकिन निर्दोषों की जान लेने वाले आतंकियों को जिंदा मत छोड़ो।”
रतन टाटा ने अपने कर्मचारियों की जान की परवाह करते हुए तीन दिन और रातें ताज होटल में बिताईं। उनके साहस और नेतृत्व की वजह से होटल का स्टाफ और अन्य लोग सुरक्षित निकले। बाद में, टाटा ने आतंकी हमले में मारे गए कर्मचारियों के परिवारों को 36 लाख से 85 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की।
रतन टाटा के निधन के बाद महाराष्ट्र सरकार ने उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ आयोजित करने का निर्णय लिया है।