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religious place dispute: लटकाना नहीं, निपटाना होगा

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सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने धार्मिक स्थलों के विवाद से जुड़े मामलों पर अहम आदेश दिया है। इस आदेश के तहत, कोर्ट ने किसी नए मामले को दायर करने पर रोक लगाते हुए, निचली अदालतों में चल रहे मामलों में कोई फाइनल या अंतरिम आदेश जारी न करने की हिदायत दी है। इस आदेश ने न्यायपालिका के अधिकार और न्याय के मौलिक सिद्धांतों पर नई बहस को जन्म दिया है। खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां धार्मिक स्थलों से जुड़े सबसे अधिक मामले चल रहे हैं, इस आदेश का प्रभाव देखा जा सकता है।

न्याय का मौलिक अधिकार और न्यायपालिका का दायित्व
कानूनी जानकारों और बुद्धिजीवियों के बीच सवाल उठ रहा है कि यदि कोई व्यक्ति न्याय के अधिकार से वंचित होता है, तो न्यायपालिका उसे कैसे रोक सकती है। न्याय में देरी को भी अन्याय माना जाता है, ऐसे में इस फैसले को लेकर कई तरह की चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं।

उत्तर प्रदेश में धार्मिक विवाद
उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों से जुड़े कई विवाद अदालतों में विचाराधीन हैं। यह राज्य ऐतिहासिक रूप से उन स्थानों का केंद्र रहा है जहां मुग़ल काल में कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तर प्रदेश के मामलों में महत्वपूर्ण हो सकता है, जहां धार्मिक विवादों को लेकर कई मुकदमे दायर किए गए हैं।

मामले जो अभी चल रहे हैं
उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों के विवाद से जुड़े कुछ प्रमुख मामलों की चर्चा करें तो, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद प्रमुख हैं। वाराणसी में 2021 में याचिका दायर होने के बाद सर्वे किया गया और अब फरवरी 2024 में मस्जिद के तहखाने में मंदिर में पूजा शुरू हो चुकी है। मथुरा में 2020 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर याचिका दायर की गई थी, जिसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

अन्य विवादित स्थल
इसी तरह, संभल की जामा मस्जिद, जौनपुर की अटाला मस्जिद और फतेहपुर सीकरी की दरगाह से जुड़े मामले भी अदालतों में चल रहे हैं। इसके अलावा, बदायूं की शम्सी मस्जिद, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद और ताजमहल से जुड़े विवाद भी अदालत में विचाराधीन हैं। इन मामलों में कुछ याचिकाएं 2024 में दायर की गई हैं और इनके निपटारे में समय लग सकता है।   सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश की अदालतों में धार्मिक विवादों से जुड़े मामलों की गति धीमी हो सकती है। हालांकि, यह मामला अभी भी चल रहा है और इसमें आगे और भी कानूनी जटिलताएं सामने आ सकती हैं।

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