नई दिल्ली, (नेशनल थॉट्स ) – जैन धर्म में रोहिणी व्रत का महत्व नक्षत्रों से माना जाता है। जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र पड़ता है, तो इस दिन यह व्रत किया जाता है। साल में 12 बार रोहिणी व्रत पड़ते हैं, और इसका पहला व्रत 4 अक्टूबर, 2023 को आएगा।
रोहिणी व्रत का महत्व (Rohini Vrat importance)
रोहिणी व्रत का महत्व जैन धर्म के साथ-साथ हिंदू धर्म में भी विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में यह व्रत माता लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है, लेकिन जैन धर्म में इसे नक्षत्रों से जोड़कर देखा जाता है। जैन धर्म में इस दिन भगवान वासु स्वामी की पूजा की जाती है।
रोहिणी व्रत पूजा विधि (Rohini Vrat Puja Vidhi)
रोहिणी व्रत की पूजा विधि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इस व्रत को रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करना शुरू करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर ॐ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। उसके बाद, लाल रंग के कपड़े पर मां लक्ष्मी की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें और उन्हें नए वस्त्र और श्रृंगार से अर्पित करें।
फिर, देवी लक्ष्मी को फल, फूल, धूप, और दीप चढ़ाएं, और उनके साथ लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। अंत में, मां लक्ष्मी को भोग लगाएं और आरती करें। इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है, और इसके बाद चंद्र को अर्घ्य दें।