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RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू नेताओं पर निशाना साधा, राम मंदिर जैसे मुद्दे न उठाने की दी सलाह

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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को हिंदू नेताओं पर निशाना साधते हुए भारत में विभिन्न स्थानों पर “राम मंदिर जैसे” विवादों को हवा देने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत को समावेशिता और सद्भाव का एक आदर्श बनना चाहिए और हमारे बहुलवादी समाज की पहचान को बनाए रखना चाहिए।

भारत की बहुलवादी प्रकृति पर जोर

आरएसएस प्रमुख ने भारत की बहुलवादी और विविध संस्कृति की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि स्वामी रामकृष्णन मिशन में क्रिसमस मनाना इसका उदाहरण है। भागवत ने कहा, “केवल हम ही ऐसा कर सकते हैं क्योंकि हम हिंदू हैं,” और इस पर बल दिया कि भारतीय समाज में सद्भाव और समन्वय की जरूरत है।

राम मंदिर के बाद विवादों को बढ़ावा देना गलत

भागवत ने राम मंदिर के निर्माण को हिंदुओं की आस्था से जोड़ा और कहा कि यह किसी भी राजनीतिक प्रेरणा से मुक्त था। उन्होंने कुछ हिंदू नेताओं पर आरोप लगाया कि वे राम मंदिर निर्माण के बाद नए विवादों को उठा कर हिंदू समुदाय का नेतृत्व करना चाहते हैं, जो बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि “हर दिन एक नया विवाद उठाया जा रहा है,” जो देश की एकता के लिए खतरनाक हो सकता है।

भारत को एक आदर्श राष्ट्र बनाना

पुणे में “विश्वगुरु भारत” विषय पर एक व्याख्यान में भागवत ने कहा कि भारतीयों को अपनी पुरानी गलतियों से सीखकर देश को एक आदर्श बनाना चाहिए, जो दुनिया के लिए उदाहरण बने। उन्होंने यह भी बताया कि भारत संविधान के अनुसार चलता है और अब बाहरी ताकतों का प्रभुत्व समाप्त हो चुका है।

बाहरी समूहों और साम्राज्य के उदाहरण

भागवत ने यह भी कहा कि कुछ बाहरी समूह पुराने शासन की वापसी का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अब देश में संविधान के अनुसार शासन होता है। मुगलों के समय से उदाहरण देते हुए, उन्होंने कहा कि जबकि औरंगजेब के शासन का पालन कठोर था, उसके बाद बहादुर शाह जफर ने गोहत्या पर रोक लगा दी, जो बदलाव की ओर एक कदम था।

भारत की विविधता और समानता की बात

आरएसएस प्रमुख ने “प्रभुत्व की भाषा” पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर हर कोई खुद को भारतीय मानता है तो इसका क्या मतलब है? उन्होंने जोर देते हुए कहा, “यहां हर कोई समान है, कोई अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक नहीं है। भारत की परंपरा यह है कि सभी अपनी-अपनी पूजा पद्धति का पालन कर सकते हैं, बशर्ते वे सद्भावना और नियमों का पालन करें।”

इस व्याख्यान में भागवत ने भारत को एकता और सद्भाव का मॉडल बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि देश की विविधता को सम्मानित किया जा सके और सभी समुदाय मिलकर एक साथ रह सकें।

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