आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की हाल ही में की गई टिप्पणी, जिसमें उन्होंने देशभर में नये मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर चिंता जताई थी, पर जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया था। इस टिप्पणी के बाद साधु-संतों और भाजपा नेताओं ने खुलकर विरोध किया था। अब, संघ से जुड़े हिंदी साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए विवाद को शांत करने की कोशिश की है।
मोहन भागवत का बयान और ‘पांचजन्य’ का स्पष्टीकरण
‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने 28 दिसंबर को प्रकाशित संपादकीय में कहा, “आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के मंदिरों पर दिए गए बयान के बाद मीडिया में घमासान मच गया है।” उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया कि भागवत का बयान समाज से समझदारी भरा रुख अपनाने का आह्वान था, और इसमें किसी तरह के उन्माद को बढ़ावा देने की मंशा नहीं थी। संपादकीय में इस बात पर जोर दिया गया कि मंदिरों के मुद्दे पर अनावश्यक बहस और भ्रामक प्रचार चिंताजनक प्रवृत्तियां हैं।
समाज को विचारशील रुख अपनाने की सलाह
संपादकीय में यह भी कहा गया कि मंदिर हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं, लेकिन इनका राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। ‘पांचजन्य’ ने सोशल मीडिया पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा समाज के भावनात्मक मुद्दों को भड़काने पर भी चिंता जताई। संपादकीय ने इन विचारकों से दूर रहने की सलाह दी, जो समाज की भावनाओं का गलत इस्तेमाल करते हैं।
भारत की सांस्कृतिक एकता का उल्लेख
संपादकीय में यह भी उल्लेख किया गया कि भारत एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है, जिसने हजारों वर्षों से एकता और विविधता को साथ निभाया है। मंदिरों का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक भी है।
मीडिया और राजनीति का सवाल
संपादकीय में मीडिया के एक विशेष प्रवृत्ति पर सवाल उठाए गए कि क्यों मंदिरों से जुड़ी खबरें और मसालेदार मुद्दे मीडिया का प्रमुख हिस्सा बन गए हैं। इसमें यह भी पूछा गया कि समाज को इन मुद्दों से क्या संदेश मिल रहा है और क्या हम इसके परिणामों का सामना करने के लिए तैयार हैं।
‘पांचजन्य’ का यह संपादकीय भागवत की टिप्पणी पर उठे विवाद को शांत करने की कोशिश का हिस्सा है, और इसके माध्यम से उन्होंने समाज को समझदारी और सादगी से आगे बढ़ने का आह्वान किया है।