सर्वपितृपक्ष अमावस्या को विसर्जनी या महालया अमावस्या भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, 16 दिन से धरती पर आए हुए पितर इस अमावस्या के दिन अपने पितृलोक में पुनः चले जाते हैं।
महालया अमावस्या महत्व
पितृ पक्ष का आखिरी दिन महालया अमावस्या होता है. इस दिन पितरों को दूध, तिल, कुशा, पुष्प मिश्रित जल से तर्पण किया जाता है. पूर्वजों के नाम से उनकी पसंद का भोजन बनाकर कौए, गाय, कुत्ते को दिया जाता है. इसके साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है.
सर्वपितृ अमावस्या के दिन करें ये उपाय
सर्वपितृ अमावस्या के दिन पीपल का पेड़ लगाने की प्रथा है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और हम पूरे वर्ष खुशहाल रहते हैं. इस दिन गरीब ब्राह्मण को जरुरत की चीजें दान करने की प्रथा है.पितृ विसर्जन के दिन पितरों की विदाई की जाती है. ऐसे में इस दिन आप पितरों का मनपसंद भोजन बनाकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं.
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी आत्मा अजर-अमर रहती है। वह अपने कार्यों के भोग भोगने के लिए नाना प्रकार की योनियों में विचरण करती है। शास्त्रों में मृत्योपरांत मनुष्य की अवस्था भेद से उसके कल्याण के लिए समय-समय पर किए जाने वाले कृत्यों का निरूपण हुआ है।
मित्रो, सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो, जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है, जैसे सत्य सनातन है, ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है, वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है, जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है, उस सत्य को ही सनातन कहते हैं, यही सनातन सत्य है।
वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिये सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है, मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है, एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है, मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है, यही सनातन धर्म का सत्य है।
असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय,
मृत्योर्मा अमृतं गमय।। (वृहदारण्य उपनिषद)
सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है, अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था, अर्थात असत्य से सत्य की ओर चलना, अंधकार से प्रकाश की ओर चलना, मृत्यु से अमृत की ओर चलना, जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं, असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं।
उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है, वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते, मृत्यु आयें इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है, अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है, सत्य यानी सत् और तत्, सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह, दोनों ही सत्य है, “अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि” अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम भी ब्रह्म हो, यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है।
पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
ब्रह्म पूर्ण है, यह जगत् भी पूर्ण है, पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है, पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती, वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है, यही सनातन सत्य है, जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं।
वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है, जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं, भाई-बहनों, आज से पितृपक्ष (श्राद्धपक्ष) का अंतिम दिन है, हर साल पितृपक्ष में सोलह दिन तक विशेष पूजा पाठ करते हैं, और अपने पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिये ये सोलह दिन श्राद्ध पक्ष कहलाते हैं, कुछ जगह पर इसे महालय भी कहते हैं।
भारतीय ऋषियों ने ये दिन इसलिये निकाले थे जिससे की लोग अपने जीवन को सुखमय कर सके, और अपने साथ साथ अपने पूर्वजो का कल्याण भी कर सके, वास्तव में ये हमारा कर्त्तव्य है की हम अपने पूर्वजो (पितरो) को समय समय पर याद करे, और उनकी कृपा के लिए उनका धन्यवाद दे, क्योंकि? हमारा अस्तित्व इस धरती पर है तो हमारे पित्रो के कारण।
हिन्दू शाश्त्रो में पितरो को पूजने के लिये भी निर्देश दिये गये हैं, जिससे की लोग सुखी और संपन्न जीवन जी सके, हिन्दू पंचांग के हिसाब से आश्विन माह में ये सोलह दिन आते हैं जब लोगो को विशेष रूप से पितरो के निमित पूजा पाठ, दान, तर्पण करना चाहिये, ऐसा विश्वास किया जाता है की जो भी हम दान-पुण्य पितरो के नाम से करते हैं वो उनको प्राप्त होता है, और बदले में वो हमे आशीष प्रदान करते हैं।
श्राद्ध पक्ष का आखरी दिन अमावस्या होता है, जिसे की “पितृ मोक्ष अमावस्या” के नाम से भी जानते हैं, इस दिन सभी लोग सभी दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना, दान, पूजा-पाठ आदि कर सकते हैं, अगर किसी व्यक्ति को अपने परिवार के किसी दिवंगत सदस्य की तिथि नहीं मालूम है, तो वह पितृ मोक्ष अमावस्या को उसके लिए श्राद्ध कर सकता है।
सज्जनों! हमारे शास्त्रों के हिसाब से सभी को अपने कर्मो का फल तो भोगना ही है, और शरीर छोड़ने के पश्चात सभी को कर्मो के अनुसार फल प्राप्त होता है, और ये भी सत्य है की जो भी हम दान पुण्य अपने पितरो के मुक्ति और कल्याण हेतु करते हैं, उससे भी उनको गति मिलती है और