सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति विवाद में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के तहत सभी निजी संपत्तियों को भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने दिया। इस पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, बीवी नागरत्ना, जेबी पारदीवाला, सुधांशु धूलिया, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया कि इस फैसले में तीन अलग-अलग राय हैं – उनकी खुद की और छह जजों की सहमति, जस्टिस नागरत्ना की आंशिक सहमति, और जस्टिस धूलिया की असहमति।
इस मामले में 1 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था। पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि सभी निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन में शामिल करना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे निवेशकों की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का अधिग्रहण नहीं कर सकती। यह मुद्दा 1978 के कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी के मामले में उठाया गया था, जिसमें जस्टिस वी आर कृष्णा अय्यर ने कहा था कि समुदाय के भौतिक संसाधनों में सार्वजनिक और निजी स्वामित्व वाले संसाधन भी शामिल हो सकते हैं। दूसरी ओर, जस्टिस एन एल उंटवालिया ने कहा था कि अधिकांश न्यायाधीश इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं।
अनुच्छेद 39 (बी) की अलग-अलग व्याख्याएं सामने आई हैं, जिससे यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या समुदाय का संसाधन है और क्या नहीं। यह अनुच्छेद संविधान के चौथे भाग में आता है, जिसमें कहा गया है कि आर्थिक संसाधनों का वितरण सभी के लिए समान रूप से होना चाहिए, ताकि धन और उत्पादन के साधनों का संकेंद्रण न हो।
इस फैसले के बाद निजी संपत्ति के मामलों में सरकार की भूमिका सीमित हो गई है, और यह निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।