शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव, श्री कृष्ण और राधिका को आश्वासन देकर कहते है कि वो शंखचूड़ का वध करेंगे। इसके बाद, महारुद्र शंकर ने देवताओं की इच्छा से अपने मन में शंखचूड़ के वध का निर्णय किया और अपने दूत को उसके पास भेजने का विचार किया। गंधर्व राज पुष्पदंत को उन्होंने अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। अपने स्वामी की आज्ञा से पुष्पदंत उस दानव के नगर में गया जो कि इंद्र की अमरावती से भी अधिक संपन्न दिखाई देता था।
उस दानव का भवन 12 दरवाजों से युक्त था। पुष्पदंत ने प्रधान द्वारपाल की आज्ञा से उस दानव के भवन में प्रवेश किया। वह दानव 3 करोड़ दैत्यों से घिरा हुआ था और सौ करोड़ उसकी रक्षा के लिए तैनात थे। यह सब देखकर पुष्पदंत को बड़ा अचरज हुआ और उसने शंखचूड़ को अपने स्वामी शिव का सन्देश पढ़कर सुनाया। उसने कहा मेरे स्वामी शिव देवताओं की रक्षा करने का वचन दे चुके है इसलिए या तो आप देवताओं को उनका राज्य लौटा दे अन्यथा शिव को आपसे युद्ध करना होगा।
उस दूत की इस प्रकार की बातें सुनकर दानव शंखचूड़ को ज़रा भी भय नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं देवताओं को उनका राज्य वापिस नहीं दूंगा। यह पृथ्वी वीरभोग्य है। इसलिए देवताओं के पक्ष में रहने वाले रूद्र से मैं युद्ध करने को तैयार हूं। उसका वचन सुनकर पुष्पदंत ने उससे कहा कि आप शिव के गणों के सामने तक नहीं ठहर सकते है रूद्र के सन्मुख खड़े होना तो बहुत दूर की बात है। अगर तुम जीवित रहना चाहते हो तो देवताओं को उनका राज्य वापिस कर दो यही उचित होगा।
शंकर सभी ईश्वरों के ईश्वर है। वही विष्णु और ब्रह्मा के स्वामी है और निर्गुण होकर भी सगुण है। वो प्रलय के कारण है इसलिए उनकी आज्ञा की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। पुष्पदंत की इस प्रकार की बातें सुनकर शंखचूड़ ने कहा, शिव से बिना युद्ध किए वो देवताओं को उनका अधिकार और राज्य दोनों ही नहीं देगा। तुम अपने स्वामी रूद्र शंकर के पास जाओ और मेरी बात उनसे कह दो। इस प्रकार पुष्पदंत वापिस अपने स्वामी रूद्र के पास आए और शंखचूड़ की सभी बातें उनसे कह दी।