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धीरे-धीरे ही सही, निरंतर आगे बढ़ना हमें एक दिन मंजिल तक पहुंचा देता है

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हरीश नाम का एक लड़का था उसको दौड़ने का बहुत शौक था वह कई मैराथन में हिस्सा ले चुका था। परंतु वह किसी भी रेस को पूरा नही करता था। एक दिन उसने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये वह रेस पूरी जरूर करेगा अब रेस शुरू हुई।
हरीश ने भी दौड़ना शुरू किया धीरे -धीरे  सारे धावक आगे निकल रहे थे मगर अब हरीश थक गया था। वह रुक गया, फिर उसने खुद से बोला अगर मैं दौड़ नही सकता तो, कम से कम चल तो सकता हुं उसने ऐसा ही किया वह धीरे-धीरे चलने लगा मगर वह आगे जरूर बढ़ रहा था। अब वह बहुत ज्यादा थक गया था।और नीचे गिर पड़ा, उसने खुद को बोला की वह कैसे भी करके आज दौड़ को पूरी जरूर करेगा। वह जिद करके वापस उठा लड़खड़ाते हुए आगे बढ़ने लगा और अंततः वह रेस पूरी कर गया।
माना कि वह रेस हार चुका था। लेकिन आज उसका विश्वास चरम पर था क्योंकि आज से पहले  रेस को कभी पूरा ही नही कर पाया था। वह जमीन पर पड़ा हुआ था। क्योंकि उसके पैरों की मांसपेशियों में बहुत खिंचाव हो चुका था, लेकिन आज वह बहुत खुश था, क्योंकि आज वह हार कर भी जीता था।
दोस्तों हम भी तो इस तरह की गलती करते है हमारे जीवन में  कभी भी अगर कोई परेशानी होती है तो उस काम को नही करते और छोड़ देते है। अगर आप एक छात्र हो और रोज 10 घंटे की पढ़ाई करते हो
और किसी दिन कोई परेशानी की वजह से आप पढ़ाई नही करते मगर आपको भले ही 5 घंटे मिले पढ़ना जरूर चाहिए। हरीश की कहानी से हमे यही सीखने को मिलता है कि अगर हम लगातार आगे बढ़ते रहे तो एक दिन हम हारकर भी जीत जाएंगे। जीता था।

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