पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद थे स्वामी ब्रह्मानंद, अंधविश्वास और अशिक्षा का किया विरोध
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आजाद भारत के पहले सन्यासी से सांसद बने स्वामी ब्रह्मानंद महाराज की आज जयंती है | उन्होंने बुंदेलखंड में शिक्षा की ज्योति जलाने के साथ लोगों में भरे अंधविश्वास और अशिक्षा जैसी सामाजिक कुरीतियों का आजीवन प्रबल विरोध किया था | वह इतने महान थे के उन्होंने अपने जीवन भर में अपने हाथ से पैसा नहीं छुआ। दलितों और गरीबों के प्रति उनके ह्रदय में अपार प्रेम था।
पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद
संसद के पहले गेरुआ वस्त्रधारी सांसद स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने अपना जीवन समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था। स्वामी ब्रह्मानंद महाराज का जन्म चार दिसंबर 1894 को सरीला तहसील के बरहरा गांव में साधारण किसान परिवार में हुआ था। बुंदेलखंड के मालवीय के नाम से प्रख्यात संत प्रवर स्वामी ब्रह्मानंद महाराज ने संसद में बुंदेलखंड को जो विशिष्ट पहचान दी वह अविस्मरणीय है।
बुंदेली भाषा के समर्थक और आध्यात्मिक विचारधारा वाले महान संत ने स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। माता यशोदा की कोख से जन्मे शिवदयाल लोधी को उनके पिता मातादीन उर्फ लाड़ने ने उच्च शिक्षा ग्रहण कराकर अधिकारी बनाने का स्वपभन देखा था। लेकिन शिवदयाल उच्चाधिकारी तो नहीं बन सके लेकिन उन्होंने अपने पिता के देखे सपने से कहीं
1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में उन्हें जेल जाना पड़ा। 1966 में गौहत्या के विरोधी आंदोलन के दौरान व कई बार जेल गए। स्वामी ब्रह्मानंद ने 1938 में ब्रह्मानंद विद्यालय की स्थापना कर 1960 में उसे महाविद्यालय का रूप दिया। स्वामी जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से सांसद रहे। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति वीवी गिरि के अभिन्न थे। उनकी निजी संपत्ति नहीं थी।