केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को घोषणा की कि दिल्ली में प्रदूषण और ट्रैफिक जाम की समस्या से निपटने के लिए सरकार एक महत्वकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। इस परियोजना का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी में ट्रैफिक और प्रदूषण को कम करना है, जिससे दिल्लीवासियों को राहत मिल सके।
65 हजार करोड़ रुपये की परियोजना
गडकरी ने बताया कि वर्तमान में दिल्ली में 65 हजार करोड़ रुपये की परियोजना पर काम चल रहा है। उनका कहना था कि इस परियोजना के जरिए ट्रैफिक जाम और प्रदूषण की समस्याओं को सुलझाया जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि परिवहन मंत्रालय 40 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
पराली के प्रदूषण पर नियंत्रण
गडकरी ने दिल्ली में प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक, पंजाब और हरियाणा के चावल के खेतों से निकलने वाली धान की पराली को बताया। उन्होंने कहा, “प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग करके, हमने पानीपत में एक परियोजना शुरू की है, जिससे 1 लाख लीटर इथेनॉल, 150 टन जैव-विटामिन और 88 हजार टन जैव-विमानन ईंधन का उत्पादन होगा।”
सीएनजी उत्पादन और पराली के उपयोग में वृद्धि
मंत्री ने आगे बताया कि 400 परियोजनाओं में से 40 पहले ही पूरी हो चुकी हैं, जिनमें से कई में पराली से सीएनजी का उत्पादन किया जा रहा है। इस कदम से 60 लाख टन पराली का उपयोग हुआ है, जो प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित हो रहा है।
पंजाब में पराली जलाने की समस्या का समाधान
गडकरी ने पंजाब के अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वे एक ऐसी योजना पर काम करें, जिससे पराली को जलाने के बजाय उसे मूल्यवान संसाधन में बदला जा सके। उन्होंने कहा, “लोग पराली के लिए प्रति टन 2,500 रुपये का भुगतान करने को तैयार हैं।”
आने वाले वर्षों में समाधान की उम्मीद
केंद्रीय मंत्री ने अनुमान जताया कि अगले दो साल में पराली जलाने की समस्या का समाधान हो जाएगा, जिससे प्रदूषण में काफी कमी आएगी। इसके साथ ही, उन्होंने वैकल्पिक और जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया। उनका कहना था कि यदि हम जीवाश्म ईंधन के आयात को 22 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 10 लाख करोड़ तक लाने में सफल होते हैं, तो देश में प्रदूषण में काफी कमी आ सकती है।
वैकल्पिक ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहनों का महत्व
गडकरी ने वैकल्पिक ईंधन और इलेक्ट्रिक वाहनों के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उनका कहना था कि इनका उपयोग बढ़ाने से डीजल और पारंपरिक इंजन वाले वाहनों की लागत के बराबर पहुंचने की संभावना है, जिससे प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा।