एक बार, अकबर अपने दरबार में दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान, किसी विषय पर अकबर और बीरबल की राय अलग-अलग पड़ गई। अकबर ने बीरबल की बात का विरोध किया और कहा, “बीरबल, तुम हमेशा से ही विचित्र बातें करते हो। तुम्हारी बातों में कभी कोई सार नहीं होता है।”
बीरबल ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया, “जहांपनाह, आपकी आज्ञा शिरोधार्य। लेकिन मेरा मानना है कि मेरी बातों में हमेशा कोई न कोई सार होता है। बस उसे समझने का नजरिया अलग होता है।” अकबर को बीरबल की बात चुभ गई। उन्होंने बीरबल को चुनौती देते हुए कहा, “अच्छा, तो यह बताओ कि क्या तुम ऐसी कोई चीज बना सकते हो, जो ना तो धरती पर हो, ना आसमान में और ना ही पानी में?”बीरबल ने कुछ सोचने का नाटक किया और फिर जवाब दिया, “जहांपनाह, आपकी आज्ञा। मैं एक ऐसी चीज बना सकता हूं, जो ना तो धरती पर होगी, ना आसमान में और ना ही पानी में।” अकबर को यह सुनकर हैरानी हुई। उन्होंने पूछा, “वह क्या है?
बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, “जहांपनाह, वह चीज है ‘आवाज’। आवाज ना तो धरती पर होती है, ना आसमान में और ना ही पानी में। यह सिर्फ सुनी जा सकती है, छूई नहीं जा सकती।” अकबर बीरबल के जवाब से म impressed ( प्रभावित ) हुए। उन्होंने स्वीकार किया कि बीरबल की बात सही थी। इस तरह, बीरबल ने अपनी चतुराई और तर्क से अकबर को एक बार फिर से प्रभावित किया।
सीख:
- समस्याओं का समाधान हमेशा सीधे तरीके से नहीं मिलता। कई बार, थोड़ी सी चतुराई और अलग सोच से जटिल समस्याओं का भी समाधान निकाला जा सकता है।