एक घने जंगल का राजा एक शक्तिशाली शेर था और उसकी सेवा में एक लोमड़ी, एक चीता, एक भेड़िया और एक चील थी जो दिन भर यहाँ-वहाँ घूम कर जंगल की सभी ख़बरें उस तक पहुंच जाती थी. जंगल के बाक़ी जानवर इन चारों को चापलूस कहते थे, क्योंकि ये सभी आलसी थे और शेर के टुकड़ों पर अपना जीवन आराम से बिता रहे थे. एक दिन, चीते ने सड़क के पास बैठे हुए एक ऊँट के बारे में शेर को बताया और कहा कि वह इंसानों द्वारा पाले जाने के कारण स्वादिष्ट मांस वाला एक बढ़िया भोजन हो सकता है. शेर वहाँ गया और पाया कि ऊँट कमजोर और बीमार था. पूछने पर उसने बताया कि बीमार होने पर एक व्यापारी ने उसे जंगल में करने के लिए छोड़ दिया था. शेर को दया आ गई और उसने ऊँट की जान बचाने का फैसला करते हुए कहा कि वह उसके संरक्षण में जंगल में रहे.
शेर की इस दयालुता को देखकर चारों चापलूस जानवर दंग रह गए. भेड़िये ने कहा कि कोई नहीं, बाद में इसे किसी तरह से मरवा देंगे. इसे तो हम ही खायेंगे. अभी जंगल के राजा का आदेश मान लेते हैं.
ऊँट उसी जंगल में हरी घास खाते-खाते कुछ ही दिनों में बिल्कुल स्वस्थ हो गया. वह शेर का बहुत आदर करता था. एक दिन शेर की एक पागल हाथी से लड़ाई हुए जिसमें उसे बहुत चोट लग गयी जिस कारण अब वह शिकार पर नहीं जा पाता था. अब उसके आलसी सेवक भी भूखे थे. एक दिन उन दुष्टों का ध्यान स्वस्थ ऊँट पर गया और उसे खाने की एक तरकीब सोची.
सबसे पहले भेड़िए ने कहा कि महाराज आप भूखे हैं इसलिए आप मुझे खा लीजिए. फिर एक-एक करके चील, लोमड़ी और फिर चीते ने शेर का भोजन बनने का प्रस्ताव दिया. ये सब नाटक इसलिए था ताकि ऊँट भी शेर का भोजन बनने का प्रस्ताव रख दे जिसे वो बेचारा नहीं समझ पाया.
उसने भी शेर से कहा, “मेरा जीवन आपकी ही देन है इसलिए आप मुझे खा कर अपनी भूख मिटा लें. चारों दुष्ट जानवरों ने ये सुनते ही कहा महाराज ऊँट सही कह रहा है. अब क्योंकि आपकी तबीयत ख़राब है, तो लाइये हम इसका शिकार आपके लिए कर देते हैं. शेर के जवाब को सुने बिना चीता और भेड़िया ऊँट पर झपटे और उसे मार डाला. शेर दु:खी तो हुआ, पर अभी तक यह नहीं समझ पाया था कि ये उसके आलसी दोस्तों की चाल थी.
कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चापलूस ओर स्वार्थी लोगों को ख़ुद से दूर रखना चाहिए, क्योंकि वे अपने फ़ायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं.