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आज की कहानी : नागपंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं जय श्री भिलट देव

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वासुकि भगवान शिव के परम भक्त थे। माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गुणों में शामिल कर लिया था। वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है।
समुद्र मंथन के दौरान वासुकि नाग को ही रस्सी के रूप में मेरु पर्वत के चारों और लपेटकर मंथन किया गया था, जिसके चलते उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था। जब भगवान श्री कृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना के उफान से वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। वेबदुनिया के शोधानुसार वासुकी ने ही कुंती पुत्र भीम को दस हजार हाथियों के बल प्राप्ति का वरदान दिया था। वासुकी के सिर पर ही नागमणि होती थी।
कैसे उत्पत्ति हुई नागों की : पुराणों अनुसार सभी नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नी कद्रू की कोख से हुई है। कद्रू ने चारों पुत्रों को जन्म दिया था जिसमें प्रमुख नाग थे- अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख, पिंगला और कुलिक। कद्रू दक्ष प्रजापति की कन्या थीं।
अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक और पिंगला- उक्त पांच नागों के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था। यह सभी कश्यप वंशी थे। इन्ही से नागवंश चला। वेबदुनिया के शोधानुसार नाग वंशावलियों में ‘शेष नाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्त होना स्वीकार किया।
वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त तीनों की कथाएं पुराणों में पाई जाती हैं। शेषनाग (अनंत) को भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिला।
एक सिद्धांत अनुसार ये मूलत: कश्मीर के थे। कश्मीर का ‘अनंतनाग’ इलाका इनका गढ़ माना जाता था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। ये लोग सर्प पूजन होने के कारण नागवंशी कहलाए। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को ‘राजभाषा’ कहते हैं।
उसके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंतर, धनंजय, कालिया, सौंफ, दुद्धी, काली, तखत, धूमल, फाहल, काना इत्यादी नाम से नागों के वंश हुआ करते थे। भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में उनका राज्य था।
अथर्ववेद में कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। ये नाम हैं श्वित्र, स्वज, पृदाकु, कल्माष, ग्रीव और तिरिचराजी नागों में चित कोबरा (वृश्चिक), काला फनियर (करैत), घास के रंग का (अपतृण), पीला (भ्रम), अनिता रंगरहित (अलीक), दासी, दुहित, अति, ताकत, अशोक और वस्तु आदि।
‘नागा आदिवासी’ का संबंध भी नागों से ही माना गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी नल और नाग वंश तथा कवर्धा के फणि-नाग वंशियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में मध्यप्रदेश के विदिशा पर शासन करने वाले नाग वंशीय राजाओं में शेष, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि आदि का उल्लेख मिलता है।
पुराणों अनुसार एक समय ऐसा था जबकि नागा समुदाय पूरे भारत (पाक-बांग्लादेश सहित) के शासक थे। उस दौरान उन्होंने भारत के बाहर भी कई स्थानों पर अपनी विजय पताकाएं फहराई थीं। तक्षक, तनक और तुस्त नेताओं के राजवंशों की लम्बी परंपरा रही है। इन नाग वंशियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि सभी समुदाय और प्रांत के लोग थे।
नागवंशियों ने भारत के कई हिस्सों पर राज किया था। इसी कारण भारत के कई शहर और गांव ‘नाग’ शब्द पर आधारित हैं। मान्यता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर सर्वप्रथम नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी नागवंशियों के कारण ही पड़ा। नागपुर के पास ही प्राचीन नगर धन नामक एक महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक नगर है। महार जाति के आधार पर ही महाराष्ट्र से महाराष्ट्र हो गया। महार जाति भी नागवंशियों की ही एक जाति थी।
इसके अलावा हिंदी भाषी राज्यों में ‘नागदाह’ नामक कई शहर और गांव मिल जाएंगे। उक्त स्थान से भी नागों के संबंध में कई किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं। नगा या इंग्लैंड को क्यों नहीं नागों या नागवंशियों की भूमि माना जा सकता है।

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