You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

आज की कहानी: कर्म से परिवर्तन

Share This Post

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ध्यान रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया।हारकर राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई। उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाऊँगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरूंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए।

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो रिक्त हाथ ही चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा। उसने मुड़ के देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चकमा देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बनने वाली, युक्ति सोची होगी।

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. वस्त्र उतारकर तालाब में फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड़ के नीचे पहुंचा बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया और आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो।

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गये।  पर उनको चोर कहीं दिखाई नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था और उनकी दृष्टि बाबा बने चोर पर पडी। सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकड़ा जाएगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वागत करता रहा।

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें। सही सही में कोई संत निकला तो ? अंततः उन्होंने छुपकर उस पर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया। जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा। एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नहीं कितने समय से बिना खाए-पिए समाधि लगाए बैठे हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शन हुए हैं। नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे। भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई। राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर में पधारे और हमें सेवा का सौभाग्य दें।

चोर ने सोचा बचने का यह अवसर है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में ले जा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे। लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-सम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और वह चोरी त्याग कर सन्यासी हो गया।

संगति, परिवेश और भाव मनुष्य में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है। रत्नाकर डाकू को गुरु मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदि कवि हो गए। संत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए। अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *