एक चूहा था। वह रास्ते पर जा रहा था। उसे कपड़े का एक टुकड़ा मिला। वह उसे लेकर आगे बढ़ा । उसने एक दर्जी की दुकान देखी । दरजी के पास जाकर उसने कहा
चूहा : दर्जी रे दर्जी ! इस कपड़े की टोपी सी दे ।
दर्जी : यह कौन बोल रहा है ?
चूहा : मैं चूहा;, चूहा बोल रहा हूँ । इसकी एक टोपी सी दे चल…..
दरजी : चल… रास्ता नाप। वरना कैंची उठा कर मारूंगा ।
चूहा: और ! तू मुझे डरा रहा है।
कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बताऊंगा, तुझे खूब पटाऊँगा और तमाशा देखेंगे ।
यह सुन दरजी डर गया। उसने झटपट टोपी सी दी ।
टोपी पहनकर चूहा आगे बढ़ा। रास्ते में कशीदाकार की दुकान देखी। चूहे को टोपी पर कसीदा बनाने की इच्छा हुई ।।
चूहा : भाई ! मेरी टोपी पर थोड़ा कसीदा काढ़ दे। कशीदाकार ने चूहे की ओर देखा । फिर उसे धमकाया और कहा ‘चल… चल… यहाँ किसे फुरसत है !”
चूहा : अच्छा, तो तू भी मुझे भगा रहा है, लेकिन सुन,
कचहरी में जाऊंगा, सिपाही को बताऊंगा, तुझे खूब पिटवाऊँगा और तमाशा देखूंगा।
यह सुन कशीदाकार घबराया। उसने चूहे को कचहरी में जाने से रोका। उससे टोपी लेकर उस पर अच्छा कशीदा काढ़ दिया। चूहा तो खुश हो गया ।
शिक्षा
जीवन में किसी को भी छोटा नहीं समझना चाहिए