राजस्थान के प्रसिद्ध जैन साहित्यकार थे-टोडरमल। उत्कृष्ट लेखन क धनी इन साहित्यकार में अपने काम के प्रति अदभुत लगन थी। वे जिस भी विषय पर लिखना तय कर लेते थे, उसे एक बार हाथ में लेने पर पूरा करके ही छोड़ते थे। एक समय वे अपने ग्रंथ ‘मोक्षमार्ग’ पर काम कर रहे थे। यह टोडरमल का लिखा विख्यात ग्रंथ है और आज भी बहुसंख्यक लोगों के लिए मार्गदर्शक बना हुआ है।
जब टोडरमल के मस्तिष्क में मोक्ष मार्ग लिखने का विचार आया तो उसके लिए उन्होंने अनेक लोगों से सामग्री जुटानी आरंभ की। टोडरमल अपने काम में इतने डूब गए कि उन्हें रात और दिन का होश ही न रहा और न खाने-पीने की सुध रही। घर के लोग उनका ध्यान रखते और वे अपना ग्रंथ लिखते रहते।
एक दिन टोडरमल अपनी मां से बोले, “मां! आज सब्जी में नमक नहीं है। लगता है आप नमक डालना भूल गईं।”
उनकी बात सुनकर मां मुस्कराते हुए बोली, “बेटा! लगता है आज तुमने अपना ग्रंथ पूरा कर लिया है?”
मां की बात सुनकर टोडरमल चौंके और हैरानी से बोले, “हां मां! मैंने अपना ग्रंथ पूरा कर लिया है, किंतु आपको इस बात का कैसे पता चला?”
मां ने जवाब दिया, “नमक तो मैं तुम्हारे भोजन में पिछले छह महीने से नहीं डाल रही थी, किंतु उसका अभाव तुम्हें आज पहली बार महसूस हुआ है। इसी से मैंने जाना। जब तक तुम्हारे मस्तिष्क में पुस्तक की विषय-सामग्री थी तब तक नमक जैसी वस्तुओं के लिए स्थान नहीं था। अब जब वह जगह खाली हो गई तो इंद्रियों के रसों ने उसे भरना शुरू कर दिया।”
दरअसल, कार्य के प्रति लगन और निष्ठा हो तो कार्य थोड़े समय में और उत्कृष्टता के साथ पूरा होता है। इसलिए जब भी कोई कार्य हाथ में लें तो उसे पूरी लग्न के साथ करें।
अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है ।