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आज की कहानी: तीर्थयात्रा का फल

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हरिहर एक सीधा-साधा किसान था। वह दिन भर खेतों में मेहनत से काम करता और शाम को प्रभु का गुणगान करता।

उसके मन की एक ही साथ थी। वह उडुपी के भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना चाहता था।

उडुपि दक्षिण कन्नड़ जिले का प्रमुख तीर्थ था। प्रतिवर्ष जब तीर्थयात्री वहां जाने को तैयार होते तो हरिहर का मन भी मचल जाता किंतु धन की कमी के कारण उसका जाना न हो पाता।

इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए। हरिहर ने कुछ पैसे जमा कर लिए। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने बहुत-सा खाने-पीने का सामान बाँध दिया।

उन दिनों यातायात के साधनों का अभाव था। तीर्थयात्री पैदल ही जाया करते।

रास्ते में हरिहर की भेंट एक बूढ़े व्यक्ति से हुई। बूढ़े के कपड़े फटे-पुराने थे और पाँव में जूते तक न थे।

अन्य तीर्थयात्री उससे कतराकर निकल गए किंतु हरिहर से न रहा गया।

उसने बूढ़े से पूछा- ‘बाबा, क्या आप भी उडुपि जा रहे हैं?’

बूढ़े की आँखों में आँसू आ गए। उसने रुँधे स्वर में उत्तर दिया- ‘मैं भला तीर्थ कैसे कर सकता हूँ?

एक बच्चा तो बीमार है और दूसरे बेटे ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया।’

हरिहर भला व्यक्ति था। उसका मन पसीज गया। उसने निश्चय किया कि वह उडुपी जाने से पहले बूढ़े के घर जाएगा।

बूढ़े के घर पहुँचते ही हरिहर ने सबको भोजन खिलाया। बीमार बच्चे को दवा दी। बूढ़े के खेत, बीजों के अभाव में खाली पड़े थे।

लौटते-लौटते हरिहर ने उसे बालों के लिए भी धन दे दिया।

जब वह उडुपि जाने लगा तो उसने पाया कि सारा धन तो खत्म हो गया था।

वह चुपचाप अपने घर लौट आया। उसके मन में तीर्थयात्रा न करने का कोई दुख न था बल्कि उसे खुशी थी कि उसने किसी का भला किया है।

हरिहर की पत्नी भी उसके इस कार्य से प्रसन्न थी।

रात को हरिहर ने सपने में भगवान कृष्ण को देखा। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा-

‘हरिहर, तुम मेरे सच्चे भक्त हो। जो व्यक्ति मेरे ही बनाए मनुष्य से प्रेम नहीं करता, वह मेरा भक्त कदापि नहीं हो सकता।’

तुमने उस बूढ़े की सहायता की और रास्ते से ही लौट आए।

उस बूढ़े व्यक्ति के वेष में मैं ही था। अनेक तीर्थयात्री मेरी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गए, एक तुमने ही मेरी विनती सुनी।

मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा! अपने स्वभाव से दया, करुणा और प्रेम का त्याग मत करना।’

हरिहर को तीर्थयात्रा का फल मिल गया था।

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