एक गरीब बालक था जो कि अनाथ था। एक दिन वो बालक एक संत के आश्रम में आया और बोला बाबा आप सबका ध्यान रखते है, मेरा इस दुनिया मेँ कोई नही है तो क्या मैं यहाँ आपके आश्रम मे रह सकता हूँ ? बालक की बात सुनकर संत बोले बेटा तेरा नाम क्या है ? उस बालक ने कहा मेरा कोई नाम नहीं है।
तब संत ने उस बालक का नाम रामदास रखा और बोले की अब तुम यहीं आश्रम मे रहना। रामदास वही रहने लगा और आश्रम के सारे काम भी करने लगा। उन संत की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन वो अपने शिष्यो से बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है तुम में से कौन कौन मेरे मेरे साथ चलेगा और कौन कौन आश्रम में रुकेगा ?
संत की बात सुनकर सारे शिष्य बोले की हम आपके साथ चलेंगे.! क्योकि उनको पता था की यहाँ आश्रम मे रुकेंगे तो सारा काम करना पड़ेगा इसलिये सभी बोले की हम तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर चलेंगे। अब संत सोच मे पड़ गये की किसे साथ ले जाये और किसे नही क्योकि आश्रम पर किसी का रुकना भी जरुरी था।
बालक रामदास संत के पास आया और बोला बाबा अगर आपको ठीक लगे तो मै यही आश्रम पर रुक जाता हूँ।संत ने कहा ठीक है पर तुझे काम करना पड़ेगा… आश्रम की साफ सफाई में भले ही कमी रह जाये पर ठाकुर जी की सेवा में कोई कमी मत रखना। रामदास ने संत से कहा कि बाबा मुझे तो ठाकुर जी की सेवा करनी नहीं आती आप बता दिजीये की ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है ? फिर मैं कर दुंगा।
संत रामदास को अपने साथ मंदिर ले गये वहाँ उस मंदिर मे राम दरबार की झांकी थी। श्री राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी और हनुमान जी थे।
संत ने बालक रामदास को ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है सब सिखा दिया। रामदास ने गुरु जी से कहा की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या होगा ये भी बता दो क्योंकि अगर रिश्ता पता चल जाये तो सेवा करने मे आनंद आयेगा।
उन संत ने बालक रामदास कहा की तु कहता था ना की मेरा कोई नही है तो आज से ये रामजी और सीताजी तेरे माता-पिता हैँ। रामदास ने साथ मे खड़े लक्ष्मण जी को देखकर कहा अच्छा बाबा और ये जो पास मे खड़े है वो कौन है ? संत ने कहा ये तेरे चाचा जी है और हनुमान जी के लिये कहा की ये तेरे बड़े भैय्या है। रामदास सब समझ गया और फिर उनकी सेवा करने लगा।
संत शिष्यों के साथ यात्रा पर चले गये। आज सेवा का पहला दिन था रामदास ने सुबह उठकर स्नान किया और भिक्षा मांग कर लाया और फिर भोजन तैयार किया फिर भगवान को भोग लगाने के लिये मंदिर आया। रामदास ने श्री राम सीता लक्ष्मण और हनुमान जी आगे एक-एक थाली रख दी और बोला अब पहले आप खाओ फिर मैं भी खाऊँगा। रामदास को लगा की सच मे भगवान बैठकर खाएंगे. पर बहुत देर हो गई रोटी तो वैसी की वैसी थी।
तब बालक रामदास ने सोचा नया नया रिश्ता बना है तो शरमा रहे होगे। रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद मे खोलकर देखा तब भी खाना वैसे का वैसा पडा था। अब तो रामदास रोने लगा की मुझसे सेवा मे कोई गलती हो गई इसलिए खाना नहीं खा रहे हैं ! और ये नही खायेंगे तो मैं भी नहीं खाऊंगा और मैं भूख से मर जाऊँगा..! इसलिये मै तो अब पहाड़ से कूदकर ही मर जाऊँगा।
रामदास मरने के लिये निकल जाता है तब भगवान रामजी हनुमान जी को कहते है हनुमान जाओ उस बालक को लेकर आओ और बालक से कहो की हम खाना खाने के लिये तैयार है। हनुमान जी जाते है और रामदास कूदने ही वाला होता है की हनुमान जी पीछे से पकड़ लेते है और बोलते है क्या कर रहे हो ? रामदास कहता है आप कौन ? हनुमान जी कहते है मैं तेरा भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये ? रामदास कहता है अब आये हो इतनी देर से वहा बोल रहा था की खाना खालो तब आये नही अब क्यों आ गये ?
तब हनुमान जी बोले पिता श्री का आदेश है अब हम सब साथ बैठकर खाना खायेगे। फिर राम जी, सीता जी, लक्ष्मण जी, हनुमान जी साक्षात बैठकर भोजन करते है। इसी तरह रामदास रोज उनकी सेवा करता और भोजन करता। सेवा करते 15 दिन हो गये एक दिन रामदास ने सोचा की कोई भी माँ बाप हो वो घर मे काम तो करते ही हैं. पर मेरे मां बाप तो कोई काम नहीं करते सारे दिन खाते रहते हैं. मैं ऐसा नहीं चलने दूँगा।
रामदास मंदिर जाता है और कहता है पिता जी कुछ बात करनी हैँ आपसे। रामजी कहते हैं बोल बेटा क्या बात है ? रामदास कहता है की अब से मै अकेले काम नही करुंगा आप सबको भी काम करना पड़ेगा, आप तो बस सारा दिन खाते रहते हो और मैं काम करता रहता हूँ अब से ऐसा नहीं होगा।
राम जी कहते हैं तो फिर बताओ बेटा हमें क्या काम करना है ? रामदास ने कहा माता जी (सीताजी) अब से रसोई आपके हवाले. और चाचा जी (लक्ष्मणजी) आप सब्जी तोड़कर लाओगे. और भैय्या जी (हनुमान जी) आप लकड़ियाँ लायेगे. और पिता जी (राम जी) आप पत्तल बनाओगे। सबने कहा ठीक है। अब सभी साथ मिलकर काम करते हुए एक परिवार की तरह सब साथ रहने लगे।
एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा से लौटे तो सीधा मंदिर मे गए और देखा की मंदिर से प्रतिमा गायब है. संत ने सोचा कहीं रामदास ने प्रतिमा बेच तो नहीं दी ? संत ने रामदास को बुलाया और पुछा भगवान कहा गये ? रामदास भी अकड़कर बोला की मुझे क्या पता रसोई मे कही काम कर रहे होंगे। संत बोले ये क्या बोल रहा ?
रामदास ने कहा बाबा मैं सच बोल रहा हूँ जबसे आप गये हैं ये चारों काम मे लगे हुए है। वो संत भागकर रसोई मे गये और सिर्फ एक झलक देखी की सीता जी भोजन बना रही हैँ रामजी पत्तल बना रहे है और फिर वह गायब हो गये और मंदिर मे विराजमान हो गये। संत रामदास के पास गए और बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर का दर्शन कराया तू धन्य है। और संत ने रो रो कर रामदास के पैर पकड़ लिये…!