एक बार मुझे दोस्त के बेटे के विवाह के रिसेप्शन में जाने का मौका मिला। स्टेज पर खड़ी खुबसूरत नयी जोड़ी को आशीर्वाद देकर मैं नीचे उतर ही रहे था कि दोस्त ने आवाज देकर वापस स्टेज पर बुलाया और कहा कि चौधरी जी नवदंपति को आशीर्वाद के साथ आज कोई अच्छी शिक्षा देते जाओ”
मैंने पर्स में से 500 रुपये का नोट निकालकर दूल्हे के हाथ में देते हुए कहा कि बेटा इसे मसल कर जमीन पर फेंक दो”
दूल्हे ने समझदारी पूर्वक कहा “अंकल, ऐसी सलाह? पैसे को तो हम लक्ष्मी मानते हैं न….”
मैंने जबाब मे उसके सरपर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हुए कहा “अति उत्तम बेटा, तुम जानते हो कि मोड़-तरोड कर, जमीन पर गिराकर भी इस कागज का मूल्य कम नही होगा, जब कागज की लक्ष्मी का इतना मान सम्मान करते हो तो आज से तुम्हारे साथ खड़ी, कंधे से कंधा मिलाकर, पूरी जिंदगी दुख सुख में साथ देने के लिए तैयार इस अमूल्य दुल्हन रूपी गृहलक्ष्मी को कितना मान सम्मान देना है, वो तुम खुद तय कर लेना” क्योंकी ये अपने मॉं-बाप की सबसे अनमोल मोती हैं ।
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