महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा
न्यूज डेस्क ( नेशनल थॉट्स ) : हमारी आज की कहानी महर्षि वाल्मीकि जी के जीवन पर आधारित है | आप में से अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे की रामायण लिखने से पहले वाल्मीकि जी एक डाकू थे | महर्षि वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था और इनके पिता ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता थे। एक भीलनी ने बचपन में इनका अपहरण कर लिया और भील समाज में इनका लालन पालन हुआ।
भील परिवार ने किया था महर्षि वाल्मीकि का पालन-पोषण
भील परिवार के लोग जंगल के रास्ते से गुजरने वालों को लूट लिया करते थे। रत्नाकर ने भी परिवार के साथ डकैती और लूटपाट का काम करना शुरू कर दिया। महर्षि वाल्मीकि से भी अच्छी थी उनकी लिखी रामायण, एक दिन संयोगवश नारद मुनि जंगल में उसी रास्ते गुजर रहे थे जहां रत्नाकर रहते थे। डाकू रत्नाकर ने नारद मुनि को पकड़ लिया।
डाकू रत्नाकर ने नारद मुनि को पकड़ा
इस घटना के बाद डाकू रत्नाकर के जीवन में ऐसा बदलाव आया कि वह डाकू से महर्षि बन गए। दरअसल जब वाल्मीकि ने नारद मुनि को बंदी बनाया तो नारद मुनि ने कहा कि, तुम जो यह पाप कर्म करके परिवार का पालन कर रहे हो क्या उसके भागीदार तुम्हारे परिवार के
लोग बनेंगे, जरा उनसे पूछ लो।
लोग बनेंगे, जरा उनसे पूछ लो।
उपाय पूछ बैठे वाल्मीकि
वाल्मीकि को विश्वास था कि सभी उनके साथ पाप में बराबर के भागीदार बनेंगे, लेकिन जब सभी ने कहा कि नहीं, अपने पाप के भागीदार तो केवल तुम ही बनोगे तो वाल्मीकि का संसार से मोह भंग हो गया। और उनके अंदर महर्षि प्रचेता के गुण और रक्त ने जोर मारना शुरू कर दिया और उन्होंने नारद मुनि से मुक्ति का उपाय पूछा।
राम नाम का मंत्र मिला
नारद मुनि से वाल्मीकि को मिला यह मंत्र नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का मंत्र दिया। जीवन भर मारो काटो कहने वाले रत्नाकर के मुंह से राम नाम निकल ही नहीं रहा था। नारद मुनि ने कहा तुम मरा-मरा बोलो इसी से तुम्हें राम मिल जाएंगे। इस मंत्र को बोलते- बोलते रत्नाकर राम में ऐसे रमे कि तपस्या में कब लीन हो गए और उनके शरीर पर कब दीमकों ने बांबी बना ली उन्हें पता ही नहीं चला।
तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी अवतरित हुए
इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने दर्शन दिए और इनके शरीर पर लगे बांबी को देखा तो रत्नाकर को वाल्मीकि नाम दिया और यह इस नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्रह्माजी ने इन्हें रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी। इस तरह वाल्मीकि ने की रामायण की रचना लेकिन रत्नाकर को यह पता नहीं था कि वह किस तरह से रामायण की रचना करेंगे।
नदी तट पर पहुँचने के बाद मिला श्राप
एक नदी तट पर सुबह पहुंचे तो क्रौंच पक्षियों के जोड़ों को प्रणय करते देखा। उसी समय एक शिकारी ने तीर से कौंच के नर को मार दिया। इससे महर्षि इतने आहत हुए कि उनके मुंह से सहसा एक शाप निकल पड़ा- मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥’ यानी जिस दुष्ट शिकारी ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है उसे कभी चैन नहीं मिलेगा।

इस तरह महर्षि ने कि रामायण की रचना
शाप देने के बाद महर्षि सोच में पड़ गए कि उनके मुंह से यह क्या निकल गया। नारद मुनि उस समय प्रकट हुए और उन्हें कहा कि यही आपका पहला श्लोक है जिससे आप रामायण की रचना करेंगे। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। इन्हीं के आश्रम में देवी सीता ने अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया था। इनका आश्रम आज भी नैनीताल के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में स्थित है जिसे सीतावनी के नाम से जाना जाता है।
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