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आज की कहानी: मुल्ला नसरुद्दीन

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एक दुकान से मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने लिए 2 तथा गधे के लिए 10 नान खरीदे, साथ ही भेड़ का भुना हुआ लज्जतदार गोश्त भी लिया।
दरी में बैठकर नसरुद्दीन खाना खाने लगा। पास ही खड़ा उसका गधा भी नानों पर हाथ साफ करने में जुटा था।
नसरुद्दीन ने उसी स्थान पर रात बिताने की सोच रखी थी। वह खुले में बैठै था तो धनी व्यापारी तथा यात्री तंबू गाड़कर भीतर बैठे मौज कर रहे थे।
तभी नसरुद्दीन के कानों में कुछ तेज-तेज आवाज़ें पड़ी, जैसे कोई झगड़ रहा हो। जिस दुकान से उसने नान तथा गोश्त खरीदा था, वहीं कुछ हलचल सी दिख रही थी।
नसरुद्दीन अपनी उत्सुकता दबा न सका और उसी ओर बढ़ चला।

उसने देखा कि दुकान का मालिक एक गरीब से दिखने वाले आदमी से झगड़ रहा था।
वह कह रहा था, ‘‘तुम्हें पैसे देने ही होंगे। तुम जानबूझ कर उस ओर लेटे थे, जिस ओर मेरी दुकान से गोश्त की खुशबू उठकर जा रही थी। सारी शाम तुम बढ़िया खाने की खुशबू का आनंद लेते रहे। मैंने देखा भी था- तुम बार-बार होंठों पर जीभ फिरा कर चटखारे ले रहे थे। मैं कोई दान-खाता खोलकर नहीं बैठा-जल्दी से पैसे चुकाओ।’’
बेचारा गरीब आदमी बेहद असहाय दिख रहा था। शायद, नसरुद्दीन की तरह उसके पास भी फालतू पैसे नहीं थे।
लालची दुकानदार की बातें सुनकर नसरुद्दीन को गुस्सा आने लगा था।

तभी दुकानदार अचानक नसरुद्दीन की तरफ मुड़ता हुआ बोला, ‘‘भाई साहब, अभी आप एक शरीफ आदमी की तरह मुझसे नान-गोश्त खरीद ले गए थे। लेकिन इस मक्कार को देखो- मुफ्त में स्वाद लेना चाहता है। क्या इसे दाम नहीं चुकाना चाहिए ?’’
नसरुद्दीन उस आदमी से मुखाबित होता बोला, ‘‘भाई, तुमने लजीज खाने की खुशबू का आनंद लिया है, तुम्हें कीमत चुकानी होगी। लाओ, जितने पैसे हैं तुम्हारे पास मुझे दे दो।’’
सुनकर दुकानदार का चेहरा खिल उठा।
गरीब आदमी ने अंटी में से कुछ सिक्के निकालकर नसरुद्दीन की हथेली पर रख दिए।
नसरुद्दीन ने उन सिक्कों को दोनों हथेलियों के बीच रखा और दुकानदार से बोला, ‘‘लाओ, अपना कान इधर लाओ और ध्यान से सुनो।’’
दुकानदार के कुछ समझ में ही नहीं आया।
नसरुद्दीन बोला, ‘‘तुमने सुनी सिक्कों की खनक ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, लाओ पैसे मुझे दे दो।’’ दुकानदार बोला।
लेकिन नसरुद्दीन ने सिक्के गरीब आदमी को लौटा दिए और दुकानदार से बोला, ‘‘हिसाब बराबर हो गया। इसने तुम्हारे खाने की खुशबू ली और तुमने बदले में सिक्कों की खनक सुन ली।’’
दुकानदार का चेहरा फक्क पड़ गया।
वहां खड़े लोगों ने भी नसरुद्दीन की बात का समर्थन किया।
उस गरीब आदमी ने नसरुद्दीन का शुक्रिया अदा किया।
जब नसरुद्दीन वापस गधे के पास पहुंचा तो वह उसे देख खुशी से मिट्टी में लोटने लगा।

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