कभी कबूतर का घोंसला देखा है । टूटा, उजड़ा सा और कभी कभी तो होता ही नहीं हैं ,ऐसा क्यों?
बात उस जमाने की है जब कबूतर झाड़ियों में अंडा दिया करते थे। लोमड़ी आती और उनके अण्डे खा जाती। रखवाली का कोई ठीक प्रबन्ध न बन पड़ा तो कबूतरों ने चिड़ियाँ से बचाव का उपाय पूछा।
चिड़िया ने कहा,”पेड़ पर घोंसला बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं।”
कबूतर ने घोंसला बनाया पर वह ठीक तरह बन न सका। आखिर उसने तय किया कि चिडिया की सहायता से घोंसला बनाने का काम पूरा किया जाय।
चिड़ियाँ को बुलाया तो वे खुशी खुशी आई और कबूतर को अच्छा घोंसला बनाना सिखाने लगी। अभी बनना शुरू ही हुआ था कि कबूतर ने कहा- “ऐसा बनाना तो हमें आता है, यों तो हमें बना लेंगे।”
चिड़ियाँ वापिस चली गई। कबूतर ने बहुत कोशिश की, पर घोंसला ठीक से बना नहीं। वह फिर चिड़िया के पास गया। चिढ़ती हुई वे फिर आई और तिनके ठीक तरह से जमाना सिखाने लगी। आधा काम भी पूरा न हो पाया था कि कबूतर उचका। उसने कहा- “ऐसे तो मैं जानता ही हूँ।”
चिड़ियाँ वापिस चली गई। कबूतर लगा रहा, पर फिर भी वह बना न सका।
चिड़ियाँ के पास फिर पहुँचा तो उसने साफ इनकार कर दिया और कहा – “जो जानता कुछ नहीं और मानता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ, ऐसे प्राणी को कोई कुछ नहीं सिखा सकता।”
नासमझ कबूतर अपने अहंकार में किसी से कुछ न सीख सका और आज तक उसका घोंसला अन्य चिड़ियों की तरह नहीं बनता है, वह टुटा फूटा ही बना पाता है ।
कहानी कहती है कि..
आज सबसे बडी विडंबना यह है कि हम सोचते है कि हम सब कुछ जानते है, जबकि सच्चाई यह है की हम बहुत कुछ नहीं जानते हैं!!
सिर्फ और सिर्फ हमारा अहंकार ही हमारी प्रगति को रोक सकता है और कोई नही।
जीवन मे सफलता का रहस्य , लगातार सोचते रहना!!