बुजुर्ग रघुवीर जी अपनी पत्नी के साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हंसी खुशी बीता रहे थे…..
पेंशन से दोनों पति पत्नी अपनी जीविका से खुश थे …..वैसे तो घर बड़ा था और उनके तीन बेटे बहुऐ भी थी मगर उनके तीनों बेटे अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ व्यस्त थे…..
वैसे उन्होंने नियम बना रखा था….दीपावली हो या कोई अन्य त्यौहार तीनों बेटे सपरिवार उनके पास आएंगे साथ रहेंगे खाएंगे वक्त बिताएंगे……पूरे एक सप्ताह तक….
वो एक सप्ताह कैसे मस्ती में बीत जाता था कुछ पता ही नहीं चलता था….सारा परिवार खुशी से झूम उठता ….अलग अलग भले ही रहते थे मगर उस एक सप्ताह में पूरी कसर साथ रहने की खत्म हो जाती …उन सुखद अनुभव और खुशियों के सहारे रघुवीर जी और सुधा की जिंदगी सुखद थी….
मगर फिर उनकी खुशियो को जैसे नज़र ही लग गई….. अचानक सुधा जी को एक रात दिल का दौरा पडा …और एक झटके में उनकी सारी खुशियां बिखर गई…..
तीनो बेटे दुखद समाचार पाकर दौड़े आए…
उनके सब कार्यक्रम के बाद सब शाम को एकत्रित हो गए…
बड़ी बहू ने बात उठाई….बाबूजी… अब आप यहां अकेले कैसे रह पाएंगे… आप हमारे साथ चलिए….
नहीं बहू…. अभी यही रहने दो…यहां अपनापन लगता है… सुधा की अनेकों यादें है और फिर बच्चों की गृहस्थी में…..कहते कहते रघुवीर जी चुप से हो गए…
बड़ा पोता कुछ बोलने को हुआ…उन्होंने हाथ के इशारे से उसे चुप कर दिया…
“बच्चो…. अब तुम लोगों की मां हम सबको छोड़ कर जा चुकी है…. उसकी कुछ चीजें है….
वो तुम लोग आपस में बांट लो मुझसे अब उनकी साज सम्हाल नहीं हो पाएगी….
कहते हुए अलमारी से रघुवीर जी कुछ निकाल कर लाए….
मखमल के थैले में बहुत सुंदर चांदी का श्रृंगार दान था…
एक बहुत सुंदर सोने के पट्टे वाली पुरानी रिस्ट वाच थी…
सब इतनी खूबसूरत चीजों पर लपक से पड़े….
छोटा बेटा जोश में बोला….अरे ये घड़ी ….ये तो अम्मा सरिता को देना चाहती थी….
रघुवीर जी धीरे से बोले….बच्चों और सब तो मै तुम लोगो को बराबर से दे ही चुका हूं…
इन दो चीजों से उन्हे बहुत लगाव था बेहद चाव से कभी कभी निकाल कर देखती थी…..
लेकिन अब कैसे उनकी दो चीजों को तुम तीनों में बांटा समझ नहीं आ रहा….
सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे…
तभी मंझला बेटा बड़े संकोच से बोला ये चांदी का श्रृंगार दान छोटे के अनुसार वो मीरा को देने की बात करती थी तो वह ले ले….और सोने के पट्टे वाली रिस्टवाच मंझली बहु को तो वह ले ले…..पर….
पर ऐसे तो समस्या तो बनी ही रहेगी …
रघुवीर जी मन में सोच रहे थे…..बड़ी बहू को क्या दूं…
उनके मन के भाव शायद उसने पढ़ लिए….बाबूजी… आप शायद मेरे विषय में सोच रहे है…
आप ये श्रृंगार दाद मीरा को …
और रिस्ट वॉच सरिता को दे दीजिए….. अम्मा भी तो यही चाहती थी….
पर नंदिनी….तुम्हें…. तुम्हें क्या दूं…..समझ में नहीं आ रहा….आखिर तुम भी तो मेरी बहु हो मेरी बेटी …..
बाबूजी…..आपके पास एक और अनमोल रत्न है …
और वो मम्मी जी मुझे ही देना चाहती थी….
रघुवीर जी की तरह दोनों बेटे बहू भी हैरानी से बडी बहु को देखने लगे… अब कौन सा पिटारा खुलेगा…
और कौन सा वो अनमोल रत्न है जो बडी भाभी चांदी के श्रृंगार दान और सोने के पट्टे वाली रिस्ट वॉच को छोड उस अनमोल रत्न को पाना चाहती है …..जरूर बेहद कीमती ….या अमूल्य होगा…..
हे भगवान शायद हमने जल्दबाजी कर दी….
सबकी हैरानी और परेशानी को भांप कर बड़ी बहू नंदिनी मुस्कुरा कर बोली….वो सबसे अनमोल रत्न तो आप स्वयं हैं बाबूजी….
पिछली बार अम्मा जी ने मुझसे कह दिया था…
मेरे बाद बाबूजी की देखरेख तेरे जिस्म…
बस अब आप उनकी इच्छा का पालन करे और हमारे साथ चलें….
रघुवीर जी की आँखें खुशी से और कृतज्ञता से भीग गई …..दोस्तों जीवन मे सबसे अनमोल हमारे माता पिता हमारे बुजुर्ग है इनका आशीर्वाद इनके अनुभव उनके सलाह इनकी छत्रछाया किसी अनमोल रतन अनमोल धरोहर से कम नहीं है …।