पांच तन्त्रों-अध्यायों में रचित होने के कारण इस ग्रन्थ का नाम ‘पञ्चतन्त्र’ है इस रचना का उद्देश्य स्वयं ग्रन्थकार के शब्दों में
‘‘कथाछलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते।’’
सरल, सुबोध और रोचक कहानियों के माध्यम से अबोध मति बालकों को राजनीति और लोक-व्यवहार के सिद्धांत से परिचित करें और उन्हें इस क्षेत्र में निपुण बनाना है। अपनी व्यापक लोकप्रियता के कारण अनादिकाल से कहानी का मानव-जीवन से चोली-दामन का साथ रहा है। बच्चों में कहानी सुनने-पढ़ने की रुचि-प्रवृत्ति सदा से ही व्यसन के स्तर पर पहुंच गई रही है। इसका कारण है— कहानी में पायी जाने वाली जिज्ञासा तथा उत्सुकता। जिस कहानी में यह तत्त्व जितना अधिक पुष्ट एवं समृद्ध होगा, वह कहानी उतनी ही अधिक सफल एवं उत्कृष्ट कहलायेगी। इस संदर्भ में प्रसिद्ध कथा-लेखक जैनेन्द्र का कथन है— ‘सफल कहानी की परख यही है कि उसे बार-बार पढ़ने का मन करे और वह बार-बार पढ़ी जाये। एक बार पढ़कर फेंक दी जाने वाली कहानी को साहित्य की परिधि में समझना ही नहीं चाहिए।’
साहित्य की विधा अथवा काव्य का एक रूप कहानी भी है। मनोरञ्जन के माध्यम से व्यक्ति का ज्ञानवर्धन एवं पथ प्रदर्शन करना साहित्य का उद्देश्य है। इसी आधार पर कहा जाता है कि केवल मनोरंजन प्रस्तुत करने वाली कहानी स्वल्प जीवी होती है। इसके विपरीत जीवन के किसी पक्ष को छूने वाली कहानी चिरंजीवी और शाश्वत महत्व प्राप्त करने वाली होती है।
‘पञ्चतन्त्र’ की कहानियाँ इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। इनमें न केवल जिज्ञासा और उत्सुकता का तत्त्व अत्यन्त पुष्ट एवं समृद्ध है, अपितु सत्य को सुन्दर बनाकर प्रस्तुत करने, अर्थात् मानव-जीवन के लिए शिव होने की प्रवृत्ति भी प्रबल है। इन्हीं कारणों से अपने अस्तित्व में आने के समय से आज लगभग दो हज़ार वर्षों की अवधि तक इन कहानियों की लोकप्रियता न केवल अक्षुण्ण बनी हुई है, अपितु इसमें निरंतर एवं उत्तरोत्तर वृद्धि भी होती रही है। विश्व की अनेक भाषाओं में इस ग्रन्थ का अनुवाद एवं रूपान्तरण इसकी व्यापक उपयोगिता तथा लोकप्रियता का प्रबल प्रमाण है। अतः यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि राजकुमारों के माध्यम से कोमल मति बालकों को राजनीतिक एवं लोक-व्यवहार में निपुण बनाने का आचार्य विष्णु शर्मा का प्रयत्न सचमुच सराहनीय रहा है तथा सभी बालकों के लिए वरदान स्वरूप है।
इसके अतिरिक्त भारतीय सभ्यता, संस्कृति, रीति-नीति, आचार-विचार तथा प्रथा-परम्परा का द्योतक ग्रन्थ होने के कारण ‘पञ्चतन्त्र’ को विशिष्ट महत्व प्रदान किया जाता है। यह ग्रन्थ समाज के सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। इस ग्रन्थ में लेखक ने छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से दैनिक जीवन से संबंधित धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक तथ्यों की जैसी सुन्दर, सरस और रोचक व्याख्या प्रस्तुत की है, वैसी किसी अन्य ग्रन्थ में मिलनी कठिन है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री सैमुअल ने पञ्चतन्त्र को मानव-जीवन के सुख-दुःख, सम्पत्ति-विपत्ति, हर्ष-विषाद, कलह-मैत्री तथा उत्थान-पतन में सच्चा मार्गदर्शक एवं अभिन्न साथी माना है। आप कैसी भी स्थिति में क्यों न हों, इस पुस्तक के पन्ने पलटिये, आपको कुछ-न-कुछ ऐसा अवश्य मिल जायेगा, जो आपकी समस्या के समाधान में सहायक और आपको तनाव मुक्त करने वाला सिद्ध होगा। जीवन में नई स्फूर्ति और नयी प्रेरणा देने वाला यह ग्रन्थ-रत्न संस्कृति का एक जाज्वल्यमान रत्न है।
संस्कृत के इस विश्व प्रसिद्ध गौरव-ग्रन्थ को हिन्दी के पाठकों तक पहुंचाने के लिए इसे सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि इसके पठन-पाठन से पाठक लाभान्वित होंगे।