सुदूर प्रदेश के नयापुरा गांव में एक चौधरी जी रहते थे। चौधरी जी ने एक दुकानदार के पास पाँच सौ रुपये रख दिये… उन्होंने सोचा कि जब बच्ची की शादी होगी, तो पैसा ले लेंगे, थोड़े सालों के बाद जब बच्ची सयानी हो गयी, तो चौधरी जी उस दुकानदार के पास गयी और अपने पैसे मांगे तो दुकानदार ने नकार दिया कि आपने कब हमें पैसा दिया था। उसने चौधरी जी से कहा कि क्या हमने कुछ लिखकर दिया है?
चौधरी जी इस हरकत से परेशान हो गये और चिंता में डूब गये।
थोड़े दिन के बाद उन्हें याद आया कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दें। ताकि वह कुछ फैसला कर दें एवं मेरा पैसा कन्या के विवाह के लिए मिल जाये। वह राजा के पास पहुँचे तथा अपनी फरियाद सुनाई…। राजा ने कहा…। कल हमारी सवारी निकलेगी तुम उस लालाजी की दुकान के पास खड़े रहना। राजा की सवारी निकली…। सभी लोगों ने फूल माला पहनाया, किसी ने आरती उतारी।
चौधरी जी लालाजी की दुकान के पास खड़े थे। राजा ने कहा – चौधरी जी! आप यहाँ कैसे? आप तो हमारे गुरु हैं? आइये इस बग्घी में बैठ जाइये, लालाजी यह सब देख रहे थे, उन्होंने आरती उतारी, सवारी आगे बढ़ गयी। थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने चौधरी जी को उतार दिया और कहा कि चौधरी जी हमने आपका काम कर दिया। अब आगे आपका भाग्य।
उधर लालाजी यह सब देखकर हैरान थे कि चौधरी जी की तो राजा से अच्छी साँठ-गाँठ है। कहीं वह हमारा कबाड़ा न करा दें। लालाजी ने अपने मुनीम को चौधरी जी को ढूंढ़कर लाने को कहा…। चौधरी जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार कर रहे थे, मुनीम जी आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले गये।
लालाजी ने प्रणाम किया और बोले – चौधरी जी! हमने काफी श्रम किया तथा पुराने खाते को देखा…तो पाया कि हमारे खाते में आपका पाँच सौ रुपये जमा है। चौधरी जी दस साल में ब्याज के बारह हजार रुपये हो गये, चौधरी जी आपकी बेटी हमारी बेटी है…अत: एक हजार रुपये आप हमारी तरफ से ले जाइये तथा उसे लड़की की शादी में लगा देना।
इस प्रकार लालाजी ने चौधरी जी को तेरह हजार रुपये देकर प्रेम के साथ विदा किया…जब मात्र एक राजा के साथ संबंध होने भर से विपदा दूर हो जाती है तो…।
हम सब भी अगर इस दुनिया के राजा,भगवान से अगर अपना सम्बन्ध जोड़ लें…। तो आपकी कोई समस्या, कठिनाई या फिर आपके साथ अन्याय का कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होगा।