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आज की कहानी:चन्दन का बाग

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सुनसान जंगल में एक लकड़हारे से
एक लोटा पानी पीकर
प्रसन्न हुआ राजा कहने लगा ~
हे पानी पिलाने वाले !
किसी दिन मेरी राजधानी में आना,
मैं तुम्हें पुरस्कार दूँगा.

लकड़हारे ने कहा ~
जी … बहुत अच्छा.

इस घटना को
बहुत समय व्यतीत हो गया,
लकड़हारा एक दिन चलता-फिरता
राजधानी जा पहुँचा, और
राजा से कहा ~
मैं वही लकड़हारा हूँ, जिसने कभी
आपको पानी पिलाया था.

राजा ने उसे देखा और प्रसन्नता से
अपने पास बिठाकर सोचने लगा, कि ~
इस निर्धन का दुख कैसे दूर करें ?

उसने सोच-विचार के पश्चात् …
चन्दन का एक विशाल उद्यान (बाग)
उसको सौंप दिया.

लकड़हारा भी मन में प्रसन्न हो गया.
चलो अच्छा हुआ,
इस बाग के वृक्षों से …
खूब कोयले होंगे ~
जीवन कट जाएगा.

अब … लकड़हारा … प्रतिदिन
चन्दन काट-काटकर
करेले बनाने लगा, और
उन्हें बेचकर अपना पेट पालने लगा.

थोड़े समय में ही
चन्दन का सुन्दर बगीचा
एक वीरान बन गया, जिसमें …
जगह-जगह कोयले के ढेर लगे थे.
केवल कुछ ही वृक्ष रह गये थे, जो …
लकड़हारे को छाया का काम देते थे.

राजा को एक दिन यूँ ही विचार आया ~
चलो ! लकड़हारे का हाल देख आएँ.
चन्दन के उद्यान का
भ्रमण भी हो जाएगा.
यह सोचकर राजा …
चन्दन के उद्यान की तरफ
जा निकला.

उसने दूर से उद्यान में धुआँ उठते देखा.
निकट आने पर ज्ञात हुआ, कि …
चन्दन जल रहा है, और …
लकड़हारा पास खड़ा है.

राजा को आते देखकर, लकड़हारा …
उनके स्वागत के लिए आगे बढ़ा.

राजा ने आते ही कहा ~
भाई ! यह तूने क्या किया ?

लकड़हारा बोला ~ आपकी कृपा से
इतना समय आराम से कट गया.
आपने यह ध्यान देकर …
मेरा बड़ा कल्याण किया.

कोयला बना-बनाकर बेचता रहा हूँ.
अब तो कुछ ही वृक्ष रह गये हैं.
यदि कोई और उद्यान मिल जाए, तो …
शेष जीवन भी व्यतीत हो जाए.

राजा मुस्कुराया और कहा ~
अच्छा … मैं यहाँ खड़ा होता हूँ.
तुम क्या नहीं … प्रत्युत
इस लकड़ी को ले-जाकर
बाजार में बेच कर आओ.

लकड़हारे ने दो गज की लकड़ी उठाई,
और … बाजार में ले गया.
लोग चन्दन देखकर दौड़े, और अन्ततः
उसे तीन सौ रुपये मिल गये, जो कि
कोयले की कीमत से
कई गुना ज्यादा थे.

लकड़हारा मूल्य लेकर
राजा के पास आया, और
रोता हुआ अपनी भाग्यहीनता
स्वीकार करने लगा.
इस कथा में
चन्दन का बाग ~
मनुष्य का शरीर और
हमारा एक-एक श्वास
चन्दन के वृक्ष हैं.
… लेकिन …
अज्ञानता वश हम इस चंदन को …
कोयले में तब्दील कर रहे हैं.

लोगों के साथ बैर, द्वेष, क्रोध
लालच, ईर्ष्या, मनमुटाव
आदि को लेकर
खींच-तान की अग्नि में हम इस
जीवन रूपी चन्दन को जला रहे हैं.

जब अंत में श्वास रूपी चन्दन के पेड़
कम रह जायेंगे,
तब अहसास होगा कि
व्यर्थ ही अनमोल चन्दन को …
इन तुच्छ कारणों से हम
दो कौड़ी के कोयले में बदल रहे थे.
.
लेकिन … अभी भी देर नहीं हुई है.
हमारे पास जो भी
चन्दन के पेड़ बचे हैं,
भगवान के भजन, कीर्तन कर अपने मनुष्य का लाभ उठावे।

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