एक जंगल में साध नामक मुनि रहते थे। उन्होंने तप करके बहुत-सी विद्या हासिल की। एक दिन ध्यान लगाने के बाद जब उनकी आंखें खुली, तो उनके हाथ में आसमान से एक गिलहरी आ गिरी। वह गिलहरी खून से लथपथ थी, क्योंकि वो चील के पंजों से छूटकर मुनि के हाथ में आ गिरी थी।
गिलहरी मौत के डर से कांप रही थी। मुनि को उसके ऊपर दया आ गई। उन्होंने सोचा क्यों न इसे अपनी विद्या से अपनी बेटी बना लूं। मेरी पत्नी कब से संतान प्राप्ति की चाह रख रही है। लेकिन, उसके भाग्य में संतान है ही नहीं। अब यह बात बताकर उसे दुखी करने की जगह कुछ साल इस गिलहरी को ही बेटी बनाकर उसे सौंप देता हूँ।
इतना सोचते ही मुनि ने एक मंत्र पढ़कर गिलहरी को एक छोटी-सी बच्ची बना दिया। वो उस गिलहरी को बच्ची बनाने के बाद गोद में उठाकर अपनी पत्नी के पास लेकर आए। उन्होंने कहा, “लो अब इसे अपनी बेटी मानकर ही पालना। सोच लो, भगवान ने तुम्हारी सुन ली है।”
मुनि की पत्नी छोटी बच्ची देखकर खुश हो गई। अब गिलहरी से बच्ची बनी लड़की मुनि के घर में बड़े लाड़-प्यार से पलने लगी। मुनि की पत्नी ने कुछ दिनों के बाद बच्ची का नाम वेदांत रखा।
मुनि और मुनि की पत्नी दोनों ने बड़े प्यार से वेदांता को पाला। मुनि को बहुत खुशी थी कि उसकी पत्नी को अपनी ममता लुटाने के लिए एक बेटी मिल गई। कुछ समय के बाद उसकी परवरिश में मुनि भूल ही गए कि वो एक गिलहरी है।
वेदांता को मुनि ने अच्छी पढ़ाई-लिखाई करवाई। देखते-ही-देखते वेदांत 16 साल की हो गई। अब मुनि की पत्नी को अपनी सुंदर बेटी की शादी करवाने की चिंता होने लगी। उन्होंने यह बात मुनि से की। अपनी बेटी की तरफ देखते हुए मुनि को भी लगा कि इसका अब विवाह हो जाना चाहिए। मुनि ने अपनी पत्नी से कहा कि तुम चिंता मत करो, मैं इसके लिए योग्य वर ढूंढ लूंगा।
मुनि को लगा कि मेरी बेटी बहुत सुंदर है और उसकी शिक्षा-दीक्षा भी अच्छी हुई है। इसलिए, उन्होंने अपनी सिद्धी से सूर्य देव को पुकारा। सूर्य देव ने मुनि को प्रणाम करके बुलाने की वजह पूछी। तब मुनि ने कहा, “मेरी बेटी विवाह के योग्य हो गई है। मैं चाहता हूँ कि आप इसके पति बनें।”
सूर्य देव ने कहा, “आप एक बार अपनी पुत्री से पूछ लीजिए। अगर उसे मंज़ूर है, तो मेरी तरफ से भी हाँ है।” तब वेदांता बोली, “पिता जी, यह बहुत गर्म हैं। मैं इनके पास नहीं जा पाऊंगी और ना ही इन्हें देख पाऊंगी। मुनि ने वेदांता से कहा, कोई बात नहीं हम दूसरा वर देख लेंगे।”
तभी सूर्य देव ने कहा, “हे मुनिवर, मुझसे श्रेष्ठ बादल है, आप उनसे बात कीजिए। वह मेरे प्रकाश को भी ढक देते हैं।”
मुनि ने अब बादल को याद किया। बादल गरजते हुए मुनि के पास पहुँचे और उन्हें नमस्कार किया। इस बार मुनि ने सीधे वेदांता से पूछा, “क्या तुम्हें यह वर पसंद है?”
वेदांता ने जवाब दिया, “पिता जी, मेरा रंग गोरा है और इनका काला। हमारी जोड़ी अच्छी नहीं लगेगी।”
तब बादल ने मुनि से कहा, “आप पवन देव को बुलाइए। वे मुझसे श्रेष्ठ हैं। उनमें मुझे उड़ाकर इधर-से-उधर ले जाने की ताकत है।”
अब मुनि ने पवन देव का स्मरण किया। पवन देव के आते ही मुनि ने अपनी बेटी से पूछा, क्या आपको यह वर पसंद है। वेदांत बोली, “पिता जी, यह तो एक जगह ठहरते ही नहीं हैं। इनके साथ मैं घर कैसे बना पाऊंगी।”
इस बार मुनि ने पवन देव से पूछा, “मुझे अपनी पुत्री के लिए वर की तलाश है। आप बताइए कि आपको श्रेष्ठ कौन है?”
पवन देव ने जवाब दिया, “मुनिवर, आप पर्वत को बुला सकते हैं। वह मेरा रास्ता रोक देते हैं। वह मुझसे श्रेष्ठ हैं।”
तुरंत मुनि ने पर्वत को पुकारा। पर्वत को देखते ही वेदांता बोली, “यह तो पत्थर हैं। उनके दिल भी पत्थर का ही होगा। इनसे विवाह कैसे हो पाएगा पिता जी।”
मुनि ने हाथ जोड़कर पर्वत देव से पूछा, “आपसे श्रेष्ठ कौन है?” पर्वतराज ने जवाब दिया, “हे मुनि, चूहा मुझमें छेद कर देता है। इस आधार से वह मुझसे श्रेष्ठ है।” इतना कहते ही पर्वत देव के कान से चूहा नीचे कूदा। वेदांता ने जैसे ही चूहे को देखा, वह खुशी के मारे उछल पड़ी। उसने कहा, “पिता जी, यह मेरा वर बनना चाहिए। मुझे यह पसंद हैं, उनकी पूंछ, कान सब कुछ कितना प्यारा है।”
मुनि ने सोचा, “अहो! मैंने एक गिलहरी को मंत्र विद्या से इंसान तो बना दिया, लेकिन इसका दिल अभी भी गिलहरी वाला ही है।” मुनि ने तुरंत वेदांता को गिलहरी बनाया और उसका विवाह चूहे से करवा दिया। विवाह के बाद दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
कहानी से सीख
इंसान चाहे बाहर से कितना भी बदल जाए, लेकिन उसका दिल वैसा ही रहता है।