कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। पुराणों की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने अमृत का स्वाद चख लिया था इसलिए मान्यता के अनुसार इस पक्षी की कभी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती। कोई बीमारी एवं वृद्धावस्था से भी इसकी मौत नहीं होती है। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होती है। जिस दिन किसी कौए की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। कौआ अकेले में भी भोजन कभी नहीं खाता, वह किसी साथी के साथ ही मिल-बांटकर भोजन ग्रहण करता है।
कौए की योग्यता :
कौआ लगभग २० इंच लंबा, गहरे काले रंग का
पक्षी है जिसके नर और मादा एक ही जैसे होते हैं। कौआ बगैर थके मीलों उड़ सकता है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाताहै।
पितरों का आश्रय स्थल :
श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
कौए को भोजन कराने का लाभ :
भादो महीने के १६ दिन कौआ हर घर की छत का मेहमान बनता है। ये १६ दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। कौए एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है।
विष्णु पुराण में श्राद्ध पक्ष में भक्ति और विनम्रता से यथाशक्ति भोजन कराने की बात कही गई है। कौए को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष के १६ दिनों तक भोजन कराया जाता है। माना जाता है कि कौए के रूप में हमारे पूर्वज ही भोजन करते हैं। कौए को भोजन कराने से सभी तरह का पितृ और कालसर्प दोष दूर हो जाता है।