एक समय की बात है. जीर्णधन नामक एक बनिये का लड़का था जिसने धन कमाने के लिए प्रदेश जाने का सोचा. अपने घर में पड़ी एक मन की भारी लोहे की तराजू को महाजन के पास धरोहर रखकर वह परदेश चला गया. जब वह वापस आया और महाजन से अपनी धरोहर माँगी तो महाजन ने बताया कि उसकी तराजू चूहे खा गए. लड़का समझ गया कि महाजन की नीयत में खोट आ गया है. इसलिए कुछ सोचकर उसने कहा, कोई बात नहीं. चूहों ने खा ली तो इसमें तुम्हारी क्या गलती?
कुछ देर के बाद उसने महाजन से कहा कि “मैं नदी में नहाने के लिए जाना चाहता हूँ और क्या तुम अपने बेटे को मेरे साथ भेज दोगे?” महाजन ने अपने बेटे को उसके साथ भेज दिया.
उसने उसे वहाँ से कुछ दूर एक गुफा में कैद कर दिया. वापस आने पर जब महाजन ने पूछा-“मेरा बेटा कहाँ है तो बनिये ने कहा “उसे चील उठा कर ले गई”
महाजन बोला ये कैसे संभव है? चील इतने बड़े लड़के को कैसे उठा कर ले जा सकती है?”
बनिया बोला “बिल्कुल वैसे ही जैसे मन भर भारी तराजू को चूहे खा गए. तुझे बेटा चाहिए तो तराजू वापस कर”.
दोनों का झगड़ा महल तक पहुँचा, जहाँ राजा के सामने महाजन ने बनिए की शिकायत की.
राजा ने बनिये को लड़का लौटाने को कहा तो बनिए ने उसे भी चील के उठा ले जाने की बात बताई.
राजा ने फिर कहा “चील कैसे बच्चे को उठा सकती है?” इस पर बनिये ने कहा “महाराज बिल्कुल वैसे ही जैसे मन भर के तराजू को चूहे खा सकते हैं.”
इस पर राजा ने जब बनिये से पूछा तो बनिए को सारी बात बतानी पड़ी और उसकी पोल खुल गयी.