सदियों पहले की बात है हिमालय के घने जंगलों में हाथियों की दो खास प्रजातियां पाई जाती थीं। एक प्रजाती थी छदन्त और दूसरी प्रजाति का नाम था उपोसथ। इनमें से छदन्त प्रजाती काफी मशहूर थी। विशाल छह दांतों की मौजूदगी के कारण ही उन्हें छदन्त के नाम से पुकारा जाता था। इन हाथियों का सिर और पैर किसी मणि की तरह सुर्ख लाल दिखाई देते थे। इन छदन्त हाथियों का राजा कंचन गुफा में रहा करता था। उसकी महासुभद्दा और चुल्लसुभद्दा नाम की दो रानियां थीं।
एक दिन हाथियों का राजा अपनी दोनों रानियों के साथ पास के एक सरोवर में नहाने के लिए जाता है। उसी सरोवर के किनारे एक पुराना विशाल वृक्ष लगा हुआ था। उस वृक्ष पर लगे फूल बड़े ही खूबसूरत और मनमोहक खुशबू वाले थे। गजराज ने खेल-खेल में अपनी सूंड से उस वृक्ष की एक डाल को कसकर हिलाया। इससे डाल पर लगे फूल महासुभद्दा पर झड़ने लगे और वह गजराज से बहुत प्रसन्न हुई। वहीं, वृक्ष की सूखी डाल पुराना होने के कारण गजराज की सूंड का जोर झेल न सकी और टूटकर फूल समेत गजराज की दूसरी रानी चुल्लसुभद्दा के ऊपर जा गिरी।
हालांकि, यह घटना संयोगवश घटी, लेकिन इसे चुल्लसुभद्दा ने अपना अपमान माना और उसी वक्त गजराज के निवास को छोड़कर कहीं दूर चली गई। जब गजराज को इस बात का पता चला, तो उसने चुल्लसुभद्दा को बहुत ढूंढा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली।
कुछ समय बाद चुल्ल सुभद्रा की मौत हुई और मरने के बाद वह मदद राज्य की राजकुमारी के रूप में पैदा हुई। युवा होने पर उसकी वाराणसी के राजा से शादी हुई और वह वाराणसी की पटरानी बनी। पुनर्जन्म के बाद भी वह छद्दन्तराज द्वारा भूलवश हुए उस अपमान को भूली नहीं और उसका बदला लेने का सोचती रही।
एक दिन मौका पाकर उसके वाराणसी के राजा को छद्दन्तराज के दांत हासिल करने के लिए उकसाया। परिणामस्वरूप कुछ कुशल निषादों के समूह को राजा ने गजराज के दांत लाने के लिए भेज दिया। गजराज के दांत लाने के लिए रवाना हुई टोली का नेता था सोनुत्तर।
सोनुत्तर करीब 7 साल का सफर तय करके गजराज के निवास पर पहुंचा। उसने गजराज को पकड़ने के लिए और अपना शिकार बनाने के लिए उसके निवास से कुछ दूरी पर एक बड़ा गड्ढा बनाया। गड्ढे को छिपाने के लिए उसने उसे पत्तियों और छोटी लकड़ियों से ढक दिया और खुद झाड़ियों में छिप गया।
जैसे ही गजराज उस गड्ढे के करीब आया, तो सोनुत्तर ने विष बुझा तीर निकाल कर छद्दन्तराज पर निशाना लगा दिया। तीर से घायल होने के बाद जब गजराज की नजर झाड़ियों में छिपे सोनुत्तर पर पड़ी, तो वह उसे मारने के लिए दौड़ा। चूंकि, सोनुत्तर संन्यासियों के वस्त्र पहनकर आया था। इस कारण गजराज ने सोनुत्तर को जीवनदान दे दिया।
गजराज से जीवनदान पाकर सोनुत्तर का मन बदल गया और उसने गजराज को सारी कहानी कह सुनाई और गजराज पर निशाना साधने का उद्देश्य बताया। जीवनदान मिलने के कारण सोनुत्तर गजराज के दांत नहीं काट सकता था, इसलिए छद्दन्तराज ने मृत्यु से पहले खुद ही अपने दांत तोड़ कर सोनुत्तर को दे दिए।
गजराज के दांत पाकर सोनुत्तर वाराणसी लौट आया और गजराज के दांत रानी के समक्ष रख दिए। साथ ही सोनुत्तर ने रानी को यह भी बताया कि किस तरह गजराज ने उसे जीवनदान देकर खुद अपने दांत दे दिए।
पूरी बात जानने के बाद रानी गजराज की मौत बर्दाश्त न कर सकी और इस सदमे से उनकी भी तुरंत मौत हो गई।
कहानी से सीख
बदले की भावना सोचने समझने की क्षमता छीन लेती है।